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पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१७६

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खूनी औरत का—



सो, जेलर साहब ने ज़रा आगे बढ़कर मुझसे यों कहा,—"दुलारी! यह मेरी स्त्री और ये दोनों कन्याएँ हैं। ये सब तुमसे मिलने आई हैं।"

यह सुन और उठकर मैंने जेलर साहब की स्त्री के चरण छूए और उनकी दोनों लड़कियों से गले गले मिली।

इसके बाद जेलर साहब की स्त्री ने मेरी गोदी में पांच फल डाल दिए और तीनों मां बेटियों ने मेरे चरन की धूल अपने अपने मांये में लगा कर यों कहा कि,—"जाओ, सुशीले! इस नरकालय, से निकल कर सुरालय में विचरण करो।"

"लाओ, मां! मुझ पतित को भी अपनी पद धूलि देकर कृतार्थ करो।"

यों कहकर मेरे पिता के समान धर्मात्मा बंगाली जेलर साहब ने भी मेरे पैर की धूल अपने मस्तक पर लगाई।

इसके बाद वे सब आंखें पोंछती हुई चली गई, जेलर साहब भी चले गए और तब मैंने अपनी आंखें पोंछ कर उन फलों को भी रुपयों के साथ बांध लिया।

इतने ही में छः बजे और जेलर साहब ने आकर मुझसे कहा,—"दुलारी! भगवान का नाम लेकर उठो और चलो। तुमको लेने के लिये बारिस्टर दीनानाथ, और अपनी पत्नी के साथ भाई निहालसिंह आगए हैं।"

यह सुनते ही मैं मंगलमय भगवान् का पवित्र नाम लेकर उठी, पुन्नी—मुन्नी भी उठ खड़ी हुई और हम तीनों जेलर साहब के पीछ पीछे चलीं।

जेल से बाहर निकलते ही जेलर साहब मुझे एक मोटर गाड़ी के पास लेगए और बोले,—"दुलारी! तुम इस गाड़ी के अंदर जाओ। भीतर भाई निहालसिंह की स्त्री बैठी हुई हैं।"

यों कह और गाड़ी का दर्वाज़ा खोलकर जेलर साहब ने