मुझे सवार करा दिया और फिर दरवाज़ा बंद कर दिया। बेचारी पुन्नी मुन्नी बाहर ही रह गई।
भीतर जाते ही एक स्वर्गसुन्दरी किशोरी ने मुझे गले लगा- कर अपनी बगल में बैठा लिया। पाठक यह जानही चुके हैं कि यह भाई निहालासंह की स्त्री सुकुमारी देवी थीं। उनके सुन्दर और हास्यमय मुखड़े की ओर देखते ही मेरी आंखें चौंधिया गई ! अरे क्या इससे भी बढ़कर सौन्दर्य सुरपुर में होता होगा ! मेरा दृश्य देख और मेरे मन का भाव समझकर सुकुमारी ने हंसकर यो कहा;-"मेरी प्यारी बहिन! इस तरह आंखें फाड़ फाड़ कर मेरे मुखड़े की ओर क्यों देख रही हो ? क्यों मैं तुमसे ज्यादे सुन्दर हूं ? "
मैंने कहा,"आपकी अपार सुन्दरता ने मेरी आंखों को अपनी ओर खैंच लिया है।
"यह सुन और खिलखिला कर सुकुमारी ने कहा,-"ओहो! यह बात है । तो बहिन ! तुम क्या कम हो! तुम्हारी इस लामिसाल खूबसूरती के लिये लाख खून माफ हैं ! और तुम तो तुम-ज़रा उधर तो देखो-तुम्हारी ये दोनों खवासिने क्या पंजाबिनों से कुछ कम हैं ? खुल गए मेरे पति के दोस्त के खवाल चुनी-खुनी के भाग !!"
मैंने “चुन्नी-खुन्नी ,, नाम सुम अचरज के साथ सुकुमारी को ओर देखा और पूछा,-"चुन्नी-खुन्नी कोन ?,
सुकुमारी ने कहा--"तुम्हारे आशिक बारिस्टर साहब के दोनों खवास ! देखो वे दोनों कहार उस दूसरी मोटर के दरवाजे के पास खड़े हुए है ?"
यह सुनकर मैंने शीशे की टट्टी में ले देखा पहिले मेरी नज़र बारिस्टर साहब पर पड़ी, उसके बाद मैंने निहालसिंह को देखा! आहा ! सुकुमारी ने अपने योग्य ही पति पाया था! उन्हीं के पास दो नौ जवान और सुन्दर नौकर खड़े हुए थे। उन्हें दिखलाकर सुकु- मारी ने मुझे यह बात बतलादी कि उन दोनों में से कोच चुनी है