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खूनी औरत का


खाऊंगी। किन्तु जब तक वैसा मैं नहीं कर लेती, तब तक ब्रह्मचर्य से रहूंगी, केवल दूध पीऊंगी और धर्ती में सोऊंगी। इसलिये हे महाशय, आप मुझ अभागी की इस तुच्छ विनती की मान लीजिए और इस कोठरी में से इन सब चीजों को दूर हटाइए।"

मेशी ऐसी बातें सुनते सुनते दयावान जेलर साहब की गानों में फनी छलफ आया था, इसलिये उन्होंगे दूसरी गोर मुँह फेर कर रूमाल से अपने नैन पोछे और मेरी ओर बिना देखे ही यों कहा,"ठीक कह रही हो, दुलारी! तुम बहुत ही ठीक कह रही हो। वास्तव में, जो कुछ तुमने कहा, उसमें रत्तीभर का भी फरक नहीं है और सचमुच तुम्हारी सी सुशीला लड़की को ऐसा ही करना भी चाहिए, परन्तु मैं क्या करूं! क्योंकि मुझे जो कुछ भाई दयाळसिंहजी ने हुकुम दिया, मैने वही किया; इसलिये। अब, जय तक वे मुझे दूसरी आज्ञा न देंगे, तब तक मैं केवल तुम्हारे कहने से वे सब चीजें यहांसे नहीं हटा सकता।"

इसपर मैने यों कहा,-"अच्छी बात है, साथ जो आपके जी में आवे,सो आप कीजिए, क्योंकि इस कोठरी में अभी बहुतेरी धर्ती खाली बची हुई है, उसो में मैं बैठ या पड़ सकती हूं।"

वे बोले,- "अच्छा, अब वे तीनों साहब आना ही चाहते हैं। सो, उनके आने पर उनसे मैं तुम्हारी सारी बातें समझाकर कह दूंगा और तब वे जैसा मुझे हुकुम देंगे, वैसा मैं करूंगा।"

यों कह और दरवाजे में ताला लगाकर जेलर साहब यहांसे चले गए और मैं खाली धर्ती में बैठकर अपने फूटे कर्मों के लिये आँसू ढलकाने लगी।