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पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/७४

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खूनी औरत का


अपनी जान बचा सकती। इसी लिये मैं दौड़ी हुई उसी कोठरी के भागे जा पहुंची और खूब जोर से चिल्ला कर मैने उन चौकीदारों को पुकारा और उन्हें बाहर बुलाया।

छओं वेचारे कोठरी के बीच में बैठे हुए आग ताप रहे थे। सो, मेरी डरावनी चिल्लाहट सुन कर वे ऐसे चिहुँक पड़े कि एक दम से सब के सब उस कोठरी के बाहर निकल आए और मुझसे सभी यो पूछने लगे कि,-"ऐं, ऐं ! क्या बात है ? तुम इतना शोर क्यों मना रही हो? क्यों, बोलो, क्या बात है ?"

पर उन सभी को उन सब वालों के जवाब देगे को उस समय मुझे छुट्टी कहां थी ! क्योंकि ज्यों ही थे छओं अपनी कोठरी के बाहर आप थे, त्योंहीं मैने बड़ी फुर्ती के साथ उस कोठरी के भीतर घुस फर अन्दर से उसकी कुण्डी चढ़ा ली थी और एक जंगलेदार खिड़की के मागे खड़ी होकर उन छओं चौकीदारों से यों कहा था,--"भाइयों तुम सब जराथानेदार की कोठरी की भोर जाओ और जाफर देखो कि वहां कैसा खून-खराबा हुआ है !"

मेरी बात मनसुनी पर दियानसहुसेन ने जरा कड़क कर यों कहा,--"ओ औरत ! तूने मेरी कोठरी के अन्दर घुस कर भीतर से कुण्डी क्यों बंद करली है ?"

इस पर मैने कहा,--" सुमो, मियांजी ! तुम " तू तड़ाफ"तो रहने दो, और जाकर जरा यह तो देखो कि तुम्हारे थानेदार और हींगन का क्या हाल हुआ है !"

ऐसी बात सुन कर रामदयाल ने कहा,--"क्यों, उन दोनों का क्या हाल है ?"

मैं बोली,--"वे दोनों मेरे लिये आपस में लड़ कर कट मरे हैं !" बस, इतना सुनते ही वे छओ जोर से चीख मार उठे और तेजी के साथ अबदुल्ला की कोठरी की ओर दौड़े।