पृष्ठ:गबन.pdf/११५

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मगर रतन सीढ़ी से नीचे उतर गई। जालपा हाथ में कंगन लिए खड़ी रही। थोड़ी देर बाद जालपा ने संदूक से पाँच सौ रुपए निकाले और दयानाथ के पास जाकर बोली- यह रुपए लीजिए, नारायणदास के पास भिजवा दीजिए। बाकी रुपए भी मैं जल्द ही दे दूंगी। दयानाथ ने झेंपकर कहा-रुपए कहाँ मिल गए? जालपा ने निस्संकोच होकर कहा–रतन के हाथ कंगन बेच दिए। दयानाथ उसका मुँह ताकने लगे।