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अभी रमा मुँह-हाथ धो रहा था कि देवीदीन प्राइमर लेकर आ पहुँचा और बोला—भैया, यह तुम्हारी अँगरेजी बड़ी विकट है। एस-आई-आर 'सर' होता है, तो पी-आई-टी 'पिट' क्यों हो जाता है? बी-यू-टी 'बट' है, लेकिन पी-यूटी 'पुट' क्यों होता है? तुम्हें भी बड़ी कठिन लगती होगी। रमा ने मुसकराकर कहा-पहले तो कठिन लगती थी, पर अब तो आसान मालूम होती है। देवीदीन—जिस दिन पराइमर खत्म होगी, महाबीरजी को सवा सेर लड्डू चढ़ाऊँगा। पराई-मर का मतलब है, पराई स्त्री मर जाए। मैं कहता हूँ, हमारीमर, पराई के मरने से हमें क्या सुख! तुम्हारे बाल-बच्चे तो हैं न भैया? रमा ने इस भाव से कहा—मानो हैं, पर न होने के बराबर हैं। हाँ, हैं तो! 'कोई चिट्ठी-चपाती आई थी?'

'न!'

'और न तुमने लिखी। अरे! तीन महीने से कोई चिट्ठी ही नहीं भेजी? घबड़ाते न होंगे लोग?'

'जब तक यहाँ कोई ठिकाना न लग जाए, क्या पत्र लिखू?' 'अरे भले आदमी, इतना तो लिख दो कि मैं यहाँ कुशल से हूँ। घर से भाग आए थे, उन लोगों को कितनी चिंता हो रही होगी! माँ-बाप तो हैं न?'

'हाँ, हैं तो।'

देवीदीन ने गिड़गिड़ाकर कहा तो भैया, आज ही चिट्ठी डाल दो, मेरी बात मानो। रमा ने अब तक अपना हाल छिपाया था। उसके मन में कितनी ही बार इच्छा हुई कि देवीदीन से कह दूँ, पर बात होंठों तक आकर रुक जाती थी। वह देवीदीन के मुँह से आलोचना सुनना चाहता था। वह जानना चाहता था कि यह क्या सलाह देता है? इस समय देवीदीन के सद्भाव ने उसे पराभूत कर दिया। बोला—मैं घर से भाग आया हूँ, दादा! देवीदीन ने मूंछों में मुसकराकर कहा—यह तो मैं जानता हूँ, क्या बाप से लड़ाई हो गई? 'नहीं!" 'माँ ने कुछ कहा होगा?'

'यह भी नहीं!'

'तो फिर घरवाली से ठन गई होगी। वह कहती होगी, मैं अलग रहँगी, तुम कहते होगे मैं अपने माँ-बाप से अलग न रहूँगा या गहने के लिए जिद करती होगी। नाक में दम कर दिया होगा। क्यों?'