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चाय का पतीला रखा हुआ है। चाय की दुकान खोल दो। यहीं एक तरफ चार-पाँच मोढ़े और मेज रख लेना। दो-दो घंटे साँझ-सवेरे बैठ जाओगे तो गुजर भर को मिल जाएगा। हमारे जितने गाहक आवेंगे, उनमें से कितने ही चाय भी पी लेंगे।

देवीदीन बोला-तब चरस के पैसे मैं इस दुकान से लिया करूँगा!

बुढिया ने विहसित और पुलकित नजरों से देखकर कहा—कौड़ी-कौड़ी का हिसाब लूँगी। इस फेर में न रहना।

रमा अपने कमरे में गया, तो उसका मन बहुत प्रसन्न था। आज उसे कुछ वही आनंद मिल रहा था, जो अपने घर भी कभी न मिला था। घर पर जो स्नेह मिलता था, वह उसे मिलना ही चाहिए था। यहाँ जो स्नेह मिला, वह मानो आकाश से टपका था। उसने स्नान किया, माथे पर तिलक लगाया और पूजा का स्वाँग भरने बैठा कि बुढिया आकर बोली–बेटा, तुम्हें रसोई बनाने में बड़ी तकलीफ होती है। मैंने एक ब्राह्मनी ठीक कर दी है। बेचारी बड़ी गरीब है। तुम्हारा भोजन बना दिया करेगी। उसके हाथ का तो तुम खा लोगे, नेम-करम से रहती है बेटा, ऐसी बात नहीं है। मुझसे रुपए-पैसे उधार ले जाती है। इसी से राजी हो गई है। उन वृद्ध आँखों से प्रगाढ़, अखंड मातृत्व झलक रहा था, कितना विशुद्ध, पवित्र ऊँच-नीच और जाति-मर्यादा का विचार आप ही आप मिट गया। बोला—जब तुम मेरी माता हो गई तो फिर काहे का छूत-विचार! मैं तुम्हारे ही हाथ का खाऊँगा। बुढिया ने जीभ दाँतों से दबाकर कहा-अरे नहीं बेटा! मैं तुम्हारा धर्म न लूंगी, कहाँ तुम बराम्हन और कहाँ हम खटीक ऐसा कहीं हुआ है!

'मैं तो तुम्हारी रसोई में खाऊँगा। जब माँ-बाप खटीक हैं, तो बेटा भी खटीक है। जिसकी आत्मा बड़ी हो, वही ब्राह्मण है।'

'और जो तुम्हारे घरवाले सुनें तो क्या कहें!'

'मुझे किसी के कहने-सुनने की चिंता नहीं है, अम्माँ आदमी पाप से नीच होता है, खाने-पीने से नीच नहीं होता। प्रेम से जो भोजन मिलता है, वह पवित्र होता है। उसे तो देवता भी खाते हैं।'

बुढिया के हृदय में भी जाति-गौरव का भाव उदय हुआ। बोली-बेटा, खटीक कोई नीच जात नहीं है। हम लोग बराम्हन के हाथ का भी नहीं खाते। कहार का पानी तक नहीं पीते। मांस-मछरी हाथ से नहीं छूते, कोई-कोई सराब पीते हैं, मुदा लुक-छिपकर। इसने किसी को नहीं छोड़ा, बेटा! बड़े-बड़े तिलकधारी गटागट पीते हैं, लेकिन मेरी रोटियाँ तुम्हें अच्छी नहीं लगेंगी?

रमा ने मुसकराकर कहा—प्रेम की रोटियों में अमृत रहता है, अम्माँ! चाहे गेहूँ की हों या बाजरे की।

बुढिया यहाँ से चली तो मानो आँचल में आनंद की निधि भरे हो।