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शहजादी—एक चंद्रहार के न होने से क्या होता है बहन, उसकी जगह गुलूबंद तो है।

जालपा ने वक्रोक्ति के भाव से कहा-हाँ, देह में एक आँख के न होने से क्या होता है और सब अंग होते ही हैं, आँखें हुई तो क्या, न हुई तो क्या!

बालकों के मुँह से गंभीर बातें सुनकर जैसे हमें हँसी आ जाती है, उसी तरह जालपा के मुँह से यह लालसा से भरी हुई बातें सुनकर राधा और बासंती अपनी हँसी न रोक सकीं। हाँ, शहजादी को हँसी न आई। यह आभूषण लालसा उसके लिए हँसने की बात नहीं, रोने की बात थी। कृत्रिम सहानुभूति दिखाती हुई बोली—सब न जाने कहाँ के जंगली हैं कि और सब चीजें तो लाए, चंद्रहार न लाए, जो सब गहनों का राजा है। लाला अभी आते हैं तो पूछती हूँ कि तुमने यह कहाँ की रीति निकाली है? ऐसा अनर्थ भी कोई करता है।

राधा और बासंती दिल में काँप रही थीं कि जालपा कहीं ताड़ न जाए। उनका बस चलता तो शहजादी का मुँह बंद कर देतीं, बार-बार उसे चुप रहने का इशारा कर रही थीं, मगर जालपा को शहजादी का यह व्यंग्य संवेदना से परिपूर्ण जान पड़ा। सजल नेत्र होकर बोली—क्या करोगी पूछकर बहन, जो होना था, सो हो गया!

शहजादी-तुम पूछने को कहती हो, मैं रुलाकर छोड़ूँगी। मेरे चढ़ाव पर कंगन नहीं आया था, उस वक्त मन ऐसा खट्टा हुआ कि सारे गहनों पर लात मार दूँ। जब तक कंगन न बन गए, मैं नींद भर सोई नहीं।

राधा-तो क्या तुम जानती हो, जालपा का चंद्रहार न बनेगा।

शहजादी–बनेगा, तब बनेगा, इस अवसर पर तो नहीं बना। दस-पाँच की चीज तो है नहीं कि जब चाहा, बनवा लिया, सैकड़ों का खर्च है, फिर कारीगर तो हमेशा अच्छे नहीं मिलते।

जालपा का भग्न हृदय शहजादी की इन बातों से मानो जी उठा, वह रुंधे कंठ से बोली-यही तो मैं भी सोचती हूँ बहन, जब आज न मिला तो फिर क्या मिलेगा!

राधा और बासंती मन-ही-मन शहजादी को कोस रही थीं और थप्पड़ दिखा-दिखाकर धमका रही थीं, पर शहजादी को इस वक्त तमाशे का मजा आ रहा था। बोली- नहीं, यह बात नहीं है। जल्दी आग्रह करने से सबकुछ हो सकता है, सास-ससुर को बार-बार याद दिलाती रहना। बहनोईजी से दो-चार दिन रूठे रहने से भी बहुत कुछ काम निकल सकता है। बस यही समझ लो कि घरवाले चैन न लेने पाएँ, यह बात हरदम उनके ध्यान में रहे। उन्हें मालूम हो जाए कि बिना चंद्रहार बनवाए कुशल नहीं। तुम जरा भी ढीली पड़ी और काम बिगड़ा।

राधा ने हँसी को रोकते हुए कहा-इनसे न बने तो तुम्हें बुला लें, क्यों? अब उठोगी कि सारी रात उपदेश ही करती रहोगी!

शहजादी–चलती हूँ, ऐसी क्या भागड़ पड़ी है। हाँ, खूब याद आई, क्यों जल्ली, तेरी अम्माँजी के पास बड़ा अच्छा चंद्रहार है। तुझे न देंगी?

जालपा ने एक लंबी साँस लेकर कहा क्या कहूँ बहन, मुझे तो आशा नहीं है।

शहजादी–एक बार कहकर देखो तो, अब उनके कौन पहनने-ओढने के दिन बैठे हैं।

जालपा-मुझसे तो न कहा जाएगा।