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रमा शाहजहाँपुर न गया था, न कोई कल्पित नाम ही उसे याद आया कि बता दे। दुस्साहस के साथ बोला-तुम तो मेरा हुलिया लिख रहे हो!

कांस्टेबल ने भभकी दी, तुम्हारा हुलिया पहले से ही लिखा हुआ है! नाम झूठ बताया, सकूनत झूठ बताई, मुहल्ला पूछा तो बगलें झाँकने लगे। महीनों से तुम्हारी तलाश हो रही है, आज जाकर मिले हो, चलो थाने पर। यह कहते हुए उसने रमानाथ का हाथ पकड़ लिया। रमा ने हाथ छुड़ाने की चेष्टा करके कहा-वारंट लाओ, तब हम चलेंगे। क्या मुझे कोई देहाती समझ लिया है?

कांस्टेबल ने एक सिपाही से कहा-पकड़ लो जी इनका हाथ, वहीं थाने पर वारंट दिखाया जाएगा।

शहरों में ऐसी घटनाएँ मदारियों के तमाशों से भी ज्यादा मनोरंजक होती हैं। सैकड़ों आदमी जमा हो गए। देवीदीन इसी समय अफीम लेकर लौटा आ रहा था, यह जमाव देखकर वह भी आ गया। देखा कि तीन कांस्टेबल रमानाथ को घसीटे लिए जा रहे हैं। आगे बढ़कर बोला हैं? हैं, जमादार! यह क्या करते हो? यह पंडितजी तो हमारे मिहमान हैं, कहाँ पकड़े लिए जाते हो?

तीनों कांस्टेबल देवीदीन से परिचित थे। रुक गए। एक ने कहा तुम्हारे मिहमान हैं यह, कब से?

देवीदीन ने मन में हिसाब लगाकर कहा–चार महीने से कुछ बेशी हुए होंगे। मुझे प्रयाग में मिल गए थे। रहनेवाले भी वहीं के हैं। मेरे साथ ही तो आए थे।

मुसलमान सिपाही ने मन में प्रसन्न होकर कहा—इनका नाम क्या है? देवीदीन ने सिटपिटाकर कहा—नाम इन्होंने बताया न होगा?

सिपाहियों का संदेह दृढ हो गया। पांडे ने आँखें निकालकर कहा—जान परत है तुमहू मिले हौ, नांव काहे नाहीं बतावत हो इनका?

देवीदीन ने आधारहीन साहस के भाव से कहा—मुझसे रोब न जमाना पांडे, समझे यहाँ धमकियों में नहीं आने के।

मुसलमान सिपाही ने मानो मध्यस्थ बनकर कहा–बूढ़े बाबा, तुम तो ख्वामख्वाह बिगड़ रहे हो, इनका नाम क्यों नहीं बतला देते?

देवीदीन ने कातर नजरों से रमा की ओर देखकर कहा हम लोग तो रमानाथ कहते हैं। असली नाम यही है या कुछ और, यह हम नहीं जानते।

पांडे ने आँखें निकालकर हथेली को सामने करके कहा-बोलो पंडितजी, क्या नाम है तुम्हारा? रमानाथ या हीरालाल? या दोनों, एक घर का एक ससुराल का?

तीसरे सिपाही ने दर्शकों को संबोधित करके कहा-नाँव है रमानाथ, बतावत है हीरालाल? सबूत हय गवा। दर्शकों में कानाफूसी होने लगी। शुबहे की बात तो है।

साफ है, नाम और पता दोनों गलत बता दिया।

एक मारवाड़ी सज्जन बोले-उचक्को सो है।