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कांस्टेबल ने रमा को परामर्श दिया कि सब हाल सच-सच कह दो, तो तुम्हारे साथ कोई सख्ती न की जाएगी।

रमा ने प्रसन्नचित्त बनने की चेष्टा करके कहा-अब तो आपके हाथ में हूँ, रियायत कीजिए या सख्ती कीजिए। इलाहाबाद की म्युनिसिपैलिटी में नौकर था। हिमाकत कहिए या बदनसीबी, चुंगी के चार सौ रुपए मुझसे खर्च हो गए। मैं वक्त पर रुपए जमा न कर सका। शर्म के मारे घर के आदमियों से कुछ न कहा, नहीं तो इतने रुपए इंतजाम हो जाना कोई मुश्किल न था। जब कुछ बस न चला, तो वहाँ से भागकर यहाँ चला आया। इसमें एक हर्फ भी गलत नहीं है।

दारोगा ने गंभीर भाव से कहा—मामला कुछ संगीन है, क्या कुछ शराब का चस्का पड़ गया था?

'मुझसे कसम ले लीजिए, जो कभी शराब मुँह से लगाई हो।'

कांस्टेबल ने विनोद करके कहा—मुहब्बत के बाजार में लुट गए होंगे, हुजूर।

रमा ने मुसकराकर कहा—मुझ जैसे फाकेमस्तों का वहाँ कहाँ गुजर?

दारोगा-तो क्या जुआ खेल डाला? या बीवी के लिए जेवर बनवा डाले!

रमा झेंपकर रह गया। अपराधी मुसकराहट उसके मुख पर रो पड़ी।

दारोगा—अच्छी बात है, तुम्हें भी यहाँ खासे मोटे जेवर मिल जाएँगे!

एकाएक बूढ़ा देवीदीन आकर खड़ा हो गया।

दारोगा ने कठोर स्वर में कहा—क्या काम है यहाँ?

देवीदीन-हुजूर को सलाम करने चला आया। इन बेचारों पर दया की नजर रहे हुजूर, बेचारे बड़े सीधे आदमी हैं।

दारोगा-बच्चा, सरकारी मुलजिम को घर में छिपाते हो, उस पर सिफारिश करने आए हो!

देवीदीन—मैं क्या सिफाशि करूँगा हुजूर, दो कौड़ी का आदमी।

दारोगा—जानता है, इन पर वारंट है, सरकारी रुपए गबन कर गए हैं।

देवीदीन-हुजूर, भूल-चूक आदमी से ही तो होती है। जवानी की उम्र है ही, खर्च हो गए होंगे। यह कहते हुए देवीदीन ने पाँच गिन्नियाँ कमर से निकालकर मेज पर रख दीं।

दारोगा ने तड़पकर कहा-यह क्या है?

देवीदीन-कुछ नहीं है, हुजूर को पान खाने को।

दारोगा-रिश्वत देना चाहता है! क्यों? कहो तो बच्चा, इसी इलजाम में भेज दूं।

देवीदीन–भेज दीजिए सरकार। घरवाली लकड़ी-कफन की फिकर से छूट जाएगी। वहीं बैठा आपको दुआ दूँगा।

दारोगा-अबे, इन्हें छुड़ाना है तो पचास गिन्नियाँ लाकर सामने रखो। जानते हो इनकी गिरफ्तारी पर पाँच सौ रुपए का इनाम है!

देवीदीन—आप लोगों के लिए इतना इनाम हुजूर क्या है। यह गरीब परदेसी आदमी है, जब तक जिएँगे, आपको