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अगर आपकी शहादत बढिया हुई और उस फरीक की जिरहों के जाल से आप निकल गए, तो फिर आप पारस हो जाएँगे! दारोगा ने उसी वक्त मोटर मँगवाई और रमा को साथ लेकर डिप्टी साहब से मिलने चल दिए। इतनी बड़ी कारगुजारी दिखाने में विलंब क्यों करते? डिप्टी से एकांत में खूब जीट उड़ाई। इस आदमी का यों पता लगाया। इसकी सूरत देखते ही भाँप गया कि मफरूर है, बस गिरफ्तार ही तो कर लिया! बात सोलहों आने सच निकली। निगाह कहीं चूक सकती है! हुजूर, मुजरिम की आँखें पहचानता हूँ। इलाहाबाद की म्युनिसिपैलिटी के रुपए गबन करके भागा है। इस मामले में शहादत देने को तैयार है। आदमी पढ़ा-लिखा, सूरत का शरीफ और जहीन है।

डिप्टी ने संदिग्ध भाव से कहा हाँ, आदमी तो होशियार मालूम होता है।

मगर मुआफीनामा लिए बगैर इसे हमारा एतबार न होगा। कहीं इसे यह शुबहा हुआ कि हम लोग इसके साथ कोई चाल चल रहे हैं, तो साफ निकल जाएगा।

डिप्टी—यह तो होगा ही। गवर्नमेंट से इसके बारे में बातचीत करना होगा। आप टेलीफोन मिलाकर इलाहाबाद पुलिस से पूछिए कि इस आदमी पर कैसा मुकदमा है? यह सब तो गवर्नमेंट को बताना होगा। दारोगाजी ने टेलीफोन डाइरेक्टरी देखी, नंबर मिलाया और बातचीत शुरू हुई।

डिप्टी-क्या बोला?

दारोगा—कहता है, यहाँ इस नाम के किसी आदमी पर मुकदमा नहीं है।

डिप्टी—यह कैसा है भाई, कुछ समझ में नहीं आता। इसने नाम तो नहीं बदल दिया?

दारोगा—कहता है, म्युनिसिपैलिटी में किसी ने रुपए गबन नहीं किए। कोई मामला नहीं है।

डिप्टी—ये तो बड़ी ताज्जुब की बात है। आदमी बोलता है हम रुपया लेकर भागा, म्युनिसिपैलिटी बोलता है कोई रुपया गबन नहीं किया। यह आदमी पागल तो नहीं है?

दारोगा-मेरी समझ में कोई बात नहीं आती, अगर कह दें कि तुम्हारे ऊपर कोई इलजाम नहीं है, तो फिर उसकी गर्द भी न मिलेगी।

अच्छा, म्युनिसिपैलिटी के दफ्तर से पूछिए।

दारोगा ने फिर नंबर मिलाया। सवाल-जवाब होने लगा।

दारोगा-आपके यहाँ रमानाथ कोई क्लर्क था?

जवाब-जी हाँ, था।

दारोगा वह कुछ रुपए गबन करके भागा है?

जवाब-नहीं। वह घर से भागा है, पर गबन नहीं किया। क्या वह आपके यहाँ है?

दारोगा-जी हाँ, हमने उसे गिरफ्तार किया है। वह खुद कहता है कि मैंने रुपए गबन किए। बात क्या है?

जवाब-पुलिस तो लाल बुझक्कड़ है। जरा दिमाग लड़ाइए।