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दारोगा—यहाँ तो अकल काम नहीं करती।

जवाब-यहीं क्या, कहीं भी काम नहीं करती। सुनिए, रमानाथ ने मीजान लगाने में गलती की, डरकर भागा। बाद में मालूम हुआ कि तहबील में कोई कमी न थी। आई समझ में बात।

डिप्टी–अब क्या करना होगा खाँ साहब, चिडिया हाथ से निकल गई!

दारोगा-निकल कैसे जाएगी हुजूर, रमानाथ से यह बात कही ही क्यों जाए? बस उसे किसी ऐसे आदमी से मिलने न दिया जाए जो बाहर की खबरें पहुँचा सके। घरवालों को उसका पता अब लग जावेगा ही, कोई-न-कोई जरूर उसकी तलाश में आवेगा। किसी को न आने दें। तहरीर में कोई बात न लाई जाए। जबानी इत्मीनान दिला दिया जाए। कह दिया जाए, कमिश्नर साहब को माफीनामा के लिए रिपोर्ट की गई है। इंस्पेक्टर साहब से भी राय ले ली जाए। इधर तो यह लोग सुपरिंटेंडेंट से परामर्श कर रहे थे, उधर एक घंटे में देवीदीन लौटकर थाने आया तो कांस्टेबल ने कहा-दारोगाजी तो साहब के पास गए।

देवीदीन ने घबड़ाकर कहा—तो बाबूजी को हिरासत में डाल दिया?

कांस्टेबल-नहीं, उन्हें भी साथ ले गए।

देवीदीन ने सिर पीटकर कहा-पुलिस वालों की बात का कोई भरोसा नहीं। कह गया कि एक घंटे में रुपए लेकर आता हूँ, मगर इतना भी सबर न हुआ। सरकार से पाँच ही सौ तो मिलेंगे। मैं छह सौ देने को तैयार हूँ। हाँ, सरकार में कारगुजारी हो जाएगी और क्या वहीं से उन्हें परागराज भेज देंगे। मुझसे भेंट भी न होगी। बुढिया रो-रोकर मर जाएगी। यह कहता हुआ देवीदीन वहीं जमीन पर बैठ गया।

कांस्टेबल ने पूछा-तो यहाँ कब तक बैठे रहोगे?

देवीदीन ने मानो कोड़े की काट से आहत होकर कहा-अब तो दारोगाजी से दो-दो बातें करके ही जाऊँगा। चाहे जेहल ही जाना पड़े, पर फटकारूँगा जरूर, बुरी तरह फटकारूँगा। आखिर उनके भी तो बाल-बच्चे होंगे! क्या भगवान् से जरा भी नहीं डरते! तुमने बाबूजी को जाती बार देखा था? बहुत रंजीदा थे?

कांस्टेबल-रंजीदा तो नहीं थे, खासी तरह हँस रहे थे। दोनों जने मोटर में बैठकर गए हैं।

देवीदीन ने अविश्वास के भाव से कहा-हँस क्या रहे होंगे बेचारे। मुँह से चाहे हँस लें, दिल तो रोता ही होगा।

देवीदीन को यहाँ बैठे एक घंटा भी न हुआ था कि सहसा जग्गो आ खड़ी हुई। देवीदीन को द्वार पर बैठे देखकर बोली-तुम यहाँ क्या करने लगे? भैया कहाँ है?

देवीदीन ने मर्माहत होकर कहा—भैया को ले गए सुपरीडंट के पास, न जाने भेंट होती है कि ऊपर ही ऊपर परागराज भेज दिए जाते हैं।

जग्गो—दारोगाजी भी बड़े वह हैं। कहाँ तो कहा था कि इतना लेंगे, कहाँ लेकर चल दिए!

देवीदीन-इसीलिए तो बैठा हूँ कि आवें तो दो-दो बातें कर लूँ।

जग्गो-हाँ, फटकारना जरूर, जो अपनी बात का नहीं, वह अपने बाप का क्या होगा? मैं तो खरी कहूँगी। मेरा क्या