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सबकुछ ले-देकर चलता बने। बँगले के गाहक आ रहे हैं। मैं भी सोचती हूँ, गाँव में जाकर शांति से पड़ी रहूँ। बँगला बिक जाएगा, तो नकद रुपए हाथ आ जाएँगे। मैं न रहँगी, तो शायद ये रुपए मुझे देखने को भी न मिलें। गोपी को साथ लेकर आज ही चली जाओ। रुपए का इंतजाम मैं कर दूंगी।

जालपा—गोपीनाथ तो शायद न जा सके, दादा की दवा-दारू के लिए भी तो कोई चाहिए।

रतन—वह मैं कर दूंगी। मैं रोज सबेरे आ जाऊँगी और दवा देकर चली जाऊँगी। शाम को भी एक बार आ जाया करूँगी।

जालपा ने मुसकराकर कहा और दिन भर उनके पास बैठा कौन रहेगा? रतन—मैं थोड़ी देर बैठी भी रहा करूँगी, मगर तुम आज ही जाओ। बेचारे वहाँ न जाने किस दशा में होंगे? तो यही तय रही न?

रतन मुंशीजी के कमरे में गई, तो रमेश बाबू उठकर खड़े हो गए और बोले-आइए देवीजी, रमा बाबू का पता चल गया!

रतन—इसमें आधा श्रेय मेरा है।

रमेश–आपकी सलाह से तो हुआ ही होगा। अब उन्हें यहाँ लाने की फिक्र करनी है।

रतन-जालपा चली जाएँ और पकड़ लाएँ। गोपी को साथ लेती जावें, आपको इसमें कोई आपत्ति तो नहीं है, दादाजी?

मुंशीजी को आपत्ति तो थी, उनका बस चलता तो इस अवसर पर दस-पाँच आदमियों को और जमा कर लेते, फिर घर के आदमियों के चले जाने पर क्यों आपत्ति न होती, मगर समस्या ऐसी आ पड़ी थी कि कुछ बोल न सके। गोपी कलकत्ता की सैर का ऐसा अच्छा अवसर पाकर क्यों न खुश होता। विशंभर दिल में ऐंठकर रह गया। विधाता ने उसे छोटा न बनाया होता, तो आज उसकी यह हकतलफी न होती। गोपी ऐसे कहाँ के बड़े होशियार हैं, जहाँ जाते हैं, कोई-न-कोई चीज खो आते हैं। हाँ, मुझसे बड़े हैं। इस दैवी विधान ने उसे मजबूर कर दिया।

रात को नौ बजे जालपा चलने को तैयार हुई। सास-ससुर के चरणों पर सिर झुकाकर आशीर्वाद लिया, विशंभर रो रहा था, उसे गले लगाकर प्यार किया और मोटर पर बैठी। रतन स्टेशन तक पहुँचाने के लिए आई थी। मोटर चली तो जालपा ने कहा-बहन, कलकत्ता तो बहुत बड़ा शहर होगा। वहाँ कैसे पता चलेगा?

रतन-पहले 'प्रजा-मित्र' के कार्यालय में जाना। वहाँ से पता चल जाएगा। गोपी बाबू तो हैं ही। जालपा-ठहरूँगी कहाँ?

रतन–कई धर्मशाले हैं। नहीं, होटल में ठहर जाना। देखो रुपए की जरूरत पड़े, तो मुझे तार देना। कोई-न-कोई इंतजाम करके भेजूंगी। बाबूजी आ जाएँ, तो मेरा बड़ा उपकार हो। यह मणिभूषण मुझे तबाह कर देगा।

जालपा–होटल वाले बदमाश तो न होंगे?

रतन-कोई जरा भी शरारत करे, तो ठोकर मारना। बस, कुछ पूछना मत, ठोकर जमाकर तब बात करना। (कमर