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मोटर जरा और समीप आई तो उस औरत का चेहरा साफ नजर आने लगा। रमा चौंक पड़ा। यह तो जालपा है! बेशक जालपा है! मगर नहीं, जालपा यहाँ कैसे आएगी? मेरा पता-ठिकाना उसे कहाँ मालूम! कहीं बुड्ढे ने उसे खत तो नहीं लिख दिया? जालपा ही है। नायब दारोगा मोटर चला रहा था। रमा ने बड़ी मित्रता के साथ कहासरदार साहब, एक मिनट के लिए रुक जाइए। मैं जरा देवीदीन से एक बात कर लूँ। नायब ने

मोटर जरा धीमी कर दी, लेकिन फिर कुछ सोचकर उसे आगे बढ़ा दिया। रमा ने तेज होकर कहा-आप तो मुझे कैदी बनाए हए हैं।

नायब ने खिसियाकर कहा-आप तो जानते हैं, डिप्टी साहब कितनी जल्द जामे से बाहर हो जाते हैं।

बँगले पर पहुँचकर रमा सोचने लगा, जालपा से कैसे मिलूँ? वहाँ जालपा ही थी, इसमें अब उसे कोई शुबहा न था। आँखों को कैसे धोखा देता? हृदय में एक ज्वाला सी उठी हुई थी, क्या करूँ? कैसे जाऊँ? उसे कपड़े उतारने की सुधि भी न रही। पंद्रह मिनट तक वह कमरे के द्वार पर खड़ा रहा। कोई हिकमत न सूझी। लाचार पलंग पर लेटा रहा। जरा ही देर में वह फिर उठा और सामने सहन में निकल आया। सड़क पर उसी वक्त बिजली रोशन हो गई। फाटक पर चौकीदार खड़ा था। रमा को उस पर इस समय इतना क्रोध आया कि गोली मार दे। अगर मुझे कोई अच्छी जगह मिल गई, तो एक-एक से समझूगा। तुम्हें तो डिसमिस कराके छोड़गा। कैसा शैतान की तरह सिर पर सवार है। मुँह तो देखो जरा, मालूम होता है, बकरी की दुम है। वाह रे आपकी पगड़ी, कोई टोकरी ढोने वाला कुली है। अभी कुत्ता पूँक पड़े, तो आप दुम दबाकर भागेंगे, मगर यहाँ ऐसे डटे खड़े हैं मानो किसी किले के द्वार की रक्षा कर रहे हैं।

एक चौकीदार ने आकर कहा-इसपिक्टर साहब ने बुलाया है। कुछ नए तवे मँगवाए हैं।

रमा ने झल्लाकर कहा-मुझे इस वक्त फुरसत नहीं है।

फिर सोचने लगा। जालपा यहाँ कैसे आई, अकेले ही आई है या और कोई साथ है? जालिम ने बुड्ढे से एक मिनट भी बात नहीं करने दी। जालपा पूछेगी तो जरूर कि क्यों भागे थे? साफ-साफ कह दूँगा, उस समय और कर ही क्या सकता था, पर इन थोड़े दिनों के कष्ट ने जीवन का प्रश्न तो हल कर दिया। अब आनंद से जिंदगी कटेगी। कोशिश करके उसी तरफ अपना तबादला करवा लूँगा। यह सोचते-सोचते रमा को खयाल आया कि जालपा भी यहाँ मेरे साथ रहे, तो क्या हरज है? बाहर वालों से मिलने की रोक-टोक है। जालपा के लिए क्या रुकावट हो सकती है, लेकिन इस वक्त इस प्रश्न को छेड़ना उचित नहीं। कल इसे तय करूँगा। देवीदीन भी विचित्र जीव है। पहले तो कई बार आया, पर आज उसने भी सन्नाटा खींच लिया। कम-से-कम इतना तो हो सकता था कि आकर पहरे वाले कांस्टेबल से जालपा के आने की खबर मुझे देता। फिर मैं देखता कि कौन जालपा को नहीं आने देता। पहले इस तरह की कैद जरूरी थी, पर अब तो मेरी परीक्षा पूरी हो चुकी। शायद सब लोग खुशी से राजी हो जाएँगे।

रसोइया थाली लाया। मांस एक ही तरह का था। रमा थाली देखते ही झल्ला गया। इन दिनों रुचिकर भोजन देखकर ही उसे भूख लगती थी। जब तक चार-पाँच प्रकार का मांस न हो, चटनी-अचार न हो, उसकी तृप्ति न होती थी। बिगड़कर बोला-क्या खाऊँ तुम्हारा सिर, थाली उठा ले जाओ।

रसोइए ने डरते-डरते कहा-हुजूर, इतनी जल्द और चीजें कैसे बनाता! अभी कुल दो घंटे तो आए हुए हैं।

'दो घंटे तुम्हारे लिए थोड़े होते हैं!'