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रमा मुँह-अँधेरे अपने बँगले जा पहुँचा। किसी को कानोकान खबर न हुई। नाश्ताकरके रमा ने खत साफ किया, कपड़े पहने और दारोगा के पास जा पहुँचा। त्योरियाँ चढ़ी हुई थीं। दारोगा ने पूछा-खैरियत तो है, नौकरों ने कोई शरारत तो नहीं की।

रमा ने खड़े-खड़े कहा-नौकरों ने नहीं, आपने शरारत की है, आपके मातहतों, अफसरों और सब ने मिलकर मुझे उल्लू बनाया है।

दारोगा ने कुछ घबड़ाकर पूछा-आखिर बात क्या है, कहिए तो?

रमानाथ–बात यही है कि इस मुआमले में अब कोई शहादत न दूँगा। उससे मेरा ताल्लुक नहीं। आपने मेरे साथ चाल चली और वारंट की धमकी देकर मुझे शहादत देने पर मजबूर किया। अब मुझे मालूम हो गया कि मेरे ऊपर कोई इलजाम नहीं। आप लोगों का चकमा था। पुलिस की तरफ से शहादत नहीं देना चाहता, मैं आज जज साहब से साफ कह दूँगा। बेगुनाहों का खून अपनी गरदन पर न लूँगा।

दारोगा ने तेज होकर कहा-आपने खुद गबन तस्लीम किया था। रमानाथ—मीजान की गलती थी। गबन न था। म्युनिसिपैलिटी ने मुझ पर कोई मुकदमा नहीं चलाया।

'यह आपको मालूम कैसे हुआ?'

'इससे आपको कोई बहस नहीं। मैं शहादत न दूंगा। साफ-साफ कह दूंगा, पुलिस ने मुझे धोखा देकर शहादत दिलवाई है। जिन तारीखों का वह वाकया है, उन तारीखों में मैं इलाहाबाद में था। म्युनिसिपल ऑफिस में मेरी हाजिरी मौजूद है।'

दारोगा ने इस आपत्ति को हँसी में उड़ाने की चेष्टा करके कहा-अच्छा साहब, पुलिस ने धोखा ही दिया, लेकिन उसका खातिरख्वाह इनाम देने को भी तो हाजिर है। कोई अच्छी जगह मिल जाएगी, मोटर पर बैठे हुए सैर करोगे। खुफिया पुलिस में कोई जगह मिल गई, तो चैन ही चैन है। सरकार की नजरों में इज्जत और रसूख कितना बढ़ गया, यों मारे-मारे फिरते। शायद किसी दफ्तर में क्लर्की मिल जाती, वह भी बड़ी मुश्किल से। यहाँ तो बैठे-बिठाए तरक्की का दरवाजा खुल गया। अच्छी तरह कारगुजारी होगी, तो एक दिन रायबहादुर मुंशी रमानाथ डिप्टी सुपरिटेंडेंट हो जाओगे। तुम्हें हमारा एहसान मानना चाहिए और आप उलटे खफा होते हैं।

रमा पर इस प्रलोभन का कुछ असर न हुआ। बोला—मुझे क्लर्क बनना मंजूर है, इस तरह की तरक्की नहीं चाहता। यह आप ही को मुबारक रहे। इतने में डिप्टी साहब और इंस्पेक्टर भी आ पहुँचे। रमा को देखकर इंस्पेक्टर साहब ने फरमाया हमारे बाबू साहब तो पहले ही से तैयार बैठे हैं। बस इसी की कारगुजारी पर वारा-न्यारा है।

रमा ने इस भाव से कहा—मानो मैं भी अपना नफा-नुकसान समझता हूँ जी। हाँ, आज वारा-न्यारा कर दूंगा। इतने दिनों तक आप लोगों के इशारे पर चला, अब अपनी आँखों से देखकर चलूँगा।

इंस्पेक्टर ने दारोगा का मुँह देखा, दारोगा ने डिप्टी का मुँह देखा, डिप्टी ने इंस्पेक्टर का मुँह देखा। यह कहता क्या