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ठीक दस बजे जालपा और देवीदीन कचहरी पहुँच गए। दर्शकों की काफी भीड़ थी। ऊपर की गैलरी दर्शकों से भरी हुई थी। कितने ही आदमी बरामदों में और सामने के मैदान में खड़े थे। जालपा ऊपर गैलरी में जा बैठी, देवीदीन बरामदे में खड़ा हो गया।

इजलास पर जज साहब के एक तरफ अहलमद था और दूसरी तरफ पुलिस के कई कर्मचारी खड़े थे। सामने कठघरे के बाहर दोनों तरफ के वकील खड़े मुकदमा पेश होने का इंतजार कर रहे थे। मुलजिमों की संख्या पंद्रह से कम न थी। सब कठघरे के बगल में जमीन पर बैठे हुए थे। सभी के हाथों में हथकड़ियाँ थीं, पैरों में बेडियाँ। कोई लेटा था, कोई बैठा था, कोई आपस में बातें कर रहा था। दो पंजे लड़ा रहे थे। दो में किसी विषय पर बहस हो रही थी। सभी प्रसन्नचित्त थे। घबराहट, निराशा या शोक का किसी के चेहरे पर चिह्न न था।

ग्यारह बजते-बजते अभियोग की पेशी हुई। पहले जाब्ते की कुछ बातें हुई, फिर दो-एक पुलिस की शहादतें हुई। अंत में कोई तीन बजे रमानाथ गवाहों के कठघरे में लाया गया। दर्शकों में सनसनी-सी फैल गई। कोई तंबोली की दुकान से पान खाता हुआ भागा, किसी ने समाचार-पत्र को मरोड़कर जेब में रखा और सब इजलास के कमरे में जमा हो गए। जालपा भी सँभलकर बारजे में खड़ी हो गई। वह चाहती थी कि एक बार रमा की आँखें उठ जाती

और वह उसे देख लेती, लेकिन रमा सिर झुकाए खड़ा था, मानो वह इधर-उधर देखते डर रहा हो, उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था। कुछ सहमा हुआ, कुछ घबराया हुआ इस तरह खड़ा था, मानो उसे किसी ने बाँध रखा है और भागने की कोई राह नहीं है। जालपा का कलेजा धक-धक् कर रहा था, मानो उसके भाग्य का निर्णय हो रहा हो। रमा का बयान शुरू हुआ। पहला ही वाक्य सुनकर जालपा सिहर उठी, दूसरे वाक्य ने उसकी त्योरियों पर बल डाल दिए, तीसरे वाक्य ने उसके चेहरे का रंग फीका कर दिया और चौथा वाक्य सुनते ही वह एक लंबी साँस खींचकर पीछे रखी हुई कुरसी पर टिक गई, मगर फिर दिल न माना। जंगले पर झुककर फिर उधर कान लगा दिए। वही पुलिस की सिखाई हुई शहादत थी, जिसका आशय वह देवीदीन के मुंह से सुन चुकी थी। अदालत में सन्नाटा छाया हुआ था। जालपा ने कई बार खाँसा कि शायद अब भी रमा की आँखें ऊपर उठ जाएँ, लेकिन रमा का सिर और भी झुक गया। मालूम नहीं, उसने जालपा के खाँसने की आवाज पहचान ली या आत्मग्लानि का भाव उदय हो गया। उसका स्वर भी कुछ धीमा हो गया।

एक महिला ने जो जालपा के साथ ही बैठी थी, नाक सिकोड़कर कहा-जी चाहता है, इस दुष्ट को गोली मार दें। ऐसे-ऐसे स्वार्थी भी इस देश में पड़े हैं, जो नौकरी या थोड़े से धन के लोभ में निरपराधों के गले पर छुरी फेरने से भी नहीं हिचकते! जालपा ने कोई जवाब न दिया।

एक दूसरी महिला ने जो आँखों पर ऐनक लगाए हुए थी, निराशा के भाव से कहा-इस अभागे देश का ईश्वर ही मालिक है। गवर्नरी तो लाला को कहीं मिल नहीं जाती! अधिक-से-अधिक कहीं क्लर्क हो जाएँगे। उसी के लिए अपनी आत्मा की हत्या कर रहे हैं। मालूम होता है, कोई मरभुखा, नीच आदमी है, पल्ले सिरे का कमीना और छिछोरा।

तीसरी महिला ने ऐनक वाली देवी से मुसकराकर पूछा-आदमी फैशनेबुल है और पढ़ा-लिखा भी मालूम होता है।