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रमा आधी रात गए सोया, तो नौ बजे दिन तक नींद न खुली। वह स्वप्न देख रहा था, दिनेश को फाँसी हो रही है। सहसा एक स्त्री तलवार लिए हुए फाँसी की ओर दौड़ी और फाँसी की रस्सी काट दी, चारों ओर हलचल मच गई। वह औरत जालपा थी। जालपा को लोग घेरकर पकड़ना चाहते थे, पर वह पकड़ में न आती थी। कोई उसके सामने जाने का साहस न कर सकता था। तब उसने एक छलाँग मारकर रमा के ऊपर तलवार चलाई। रमा घबड़ाकर उठ बैठा। देखा तो दारोगा और इंस्पेक्टर कमरे में खड़े हैं और डिप्टी साहब आरामकुरसी पर लेटे हुए सिगार पी रहे हैं।

दारोगा ने कहा—आज तो आप खूब सोए बाबू साहब! कल कब लौटे थे?

रमा ने एक कुरसी पर बैठकर कहा-जरा देर बाद लौट आया था। इस मुकदमे की अपील तो हाईकोर्ट में होगी न?

इंस्पेक्टर-अपील क्या होगी, जाब्ते की पाबंदी होगी। आपने मुकदमे को इतना मजबूत कर दिया है कि वह अब किसी के हिलाए हिल नहीं सकता। हलफ से कहता हूँ, आपने कमाल कर दिया। अब आप उधर से बेफिक्र हो जाइए। हाँ, अभी जब तक फैसला न हो जाए, यह मुनासिब होगा कि आपकी हिफाजत का खयाल रखा जाए। इसलिए फिर पहरे का इंतजाम कर दिया गया है। इधर, हाईकोर्ट से फैसला हुआ, उधर आपको जगह मिली।

डिप्टी साहब ने सिगार का धुआँ फेंककर कहा-यह डी.ओ. कमिश्नर साहब ने आपको दिया है, जिसमें आपको कोई तरह की शक न हो। देखिए, यू.पी. के होम सेक्रेटरी के नाम है। आप वहाँ यह डी.ओ. दिखाएँगे, वह आपको कोई बहुत अच्छी जगह दे देगा। इंस्पेक्टर, कमिश्नर साहब आपसे बहुत खुश हैं, हलफ से कहता हूँ। डिप्टी बहुत खुश हैं। वह यू.पी. को अलग डायरेक्ट भी चिट्ठी लिखेगा। तुम्हारा भाग्य खुल गया।

यह कहते हुए उसने डी.ओ. रमा की तरफ बढ़ा दिया। रमा ने लिफाफा खोलकर देखा और एकाएक उसको फाड़कर पुर्जे-पुर्जे कर डाला। तीनों आदमी विस्मय से उसका मुँह ताकने लगे।

दारोगा ने कहा-रात बहुत पी गए थे क्या? आपके हक में अच्छा न होगा!

इंस्पेक्टर-हलफ से कहता हूँ, कमिश्नर साहब को मालूम हो जाएगा, तो बहुत नाराज होंगे।

डिप्टी—इसका कुछ मतलब हमारी समझ में नहीं आया। इसका क्या मतलब है?

रमानाथ—इसका यह मतलब है कि मुझे इस डी.ओ. की जरूरत नहीं है और न मैं नौकरी चाहता हूँ। मैं आज ही यहाँ से चला जाऊँगा।

डिप्टी-जब तक हाईकोर्ट का फैसला न हो जाए, तब तक आप कहीं नहीं जा सकता।

रमानाथ-क्यों?

डिप्टी कमिश्नर साहब का यह हुक्म है।

रमानाथ-मैं किसी का गुलाम नहीं हूँ।