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इंस्पेक्टर बाबू रमानाथ, आप क्यों बना-बनाया खेल बिगाड़ रहे हैं? जो कुछ होना था, वह हो गया। दस-पाँच दिन में हाईकोर्ट से फैसले की तसदीक हो जाएगी। आपकी बेहतरी इसी में है कि जो सिला मिल रहा है, उसे खुशी से लीजिए और आराम से जिंदगी के दिन बसर कीजिए। खुदा ने चाहा, तो एक दिन आप भी किसी ऊँचे ओहदे पर पहुँच जाएँगे। इससे क्या फायदा कि अफसरों को नाराज कीजिए और कैद की मुसीबतें झेलिए। हलफ से कहता हूँ, अफसरों की जरा सी निगाह बदल जाए, तो आपका कहीं पता न लगे। हलफ से कहता हूँ, एक इशारे में आपको दस साल की सजा हो जाए। आप हैं किस खयाल में? हम आपके साथ शरारत नहीं करना चाहते। हाँ, अगर आप हमें सख्ती करने पर मजबूर करेंगे, तो हमें सख्ती करनी पड़ेगी। जेल को आसान न समझिएगा। खुदा दोजख में ले जाए, पर जेल की सजा न दे। मार-धाड़, गाली-गुफ्ता वह तो वहाँ की मामूली सजा है। चक्की में जोत दिया तो मौत ही आ गई। हलफ से कहता हूँ, दोजख से बदतर है जेल!

दारोगा—यह बेचारे अपनी बेगम साहब से माजूर हैं। वह शायद इनके जान की गाहक हो रही हैं। उनसे इनकी कोर दबती है।

इंस्पेक्टर-क्या हुआ, कल तो वह हार दिया था न? फिर भी राजी नहीं हुई?

रमा ने कोट की जेब से हार निकालकर मेज पर रख दिया और बोला—वह हार यह रखा हुआ है।

इंस्पेक्टर—अच्छा, इसे उन्होंने नहीं कबूल किया।

डिप्टी—कोई प्राउड लेडी हैं।

इंस्पेक्टर—कुछ उनकी भी मिजाजपुरसी करने की जरूरत होगी।

दारोगा—यह तो बाबू साहब के रंग-ढंग और सलीके पर मुनहसर है। अगर आप ख्वामख्वाह हमें मजबूर न करेंगे, तो हम आपके पीछे न पड़ेंगे।

डिप्टी—उस खटीक से भी मुचलका ले लेना चाहिए।

रमानाथ के सामने एक नई समस्या आ खड़ी हुई, पहली से कहीं जटिल, कहीं भीषण। संभव था, वह अपने को कर्तव्य की वेदी पर बलिदान कर देता, दो-चार साल की सजा के लिए अपने को तैयार कर लेता। शायद इस समय उसने अपने आत्म-समर्पण का निश्चय कर लिया था, पर अपने साथ जालपा को भी संकट में डालने का साहस वह किसी तरह न कर सकता था। वह पुलिस के शिकंजे में कुछ इस तरह दब गया था कि अब उसे बेदाग निकल जाने का कोई मार्ग दिखाई न देता था। उसने देखा कि इस लड़ाई में मैं पेश नहीं पा सकता। पुलिस सर्वशक्तिमान है, वह मुझे जिस तरह चाहे दबा सकती है। उसके मिजाज की तेजी गायब हो गई। विवश होकर बोला-आखिर आप लोग मुझसे क्या चाहते हैं?

इंस्पेक्टर ने दारोगा की ओर देखकर आँखें मारी, मानो कह रहे हों आ गया पंजे में और बोले-बस इतना ही कि आप हमारे मेहमान बने रहें और मुकदमे के हाईकोर्ट में तय हो जाने के बाद यहाँ से रुखसत हो जाएँ, क्योंकि उसके बाद हम आपकी हिफाजत के जिम्मेदार न होंगे। अगर आप कोई सर्टिफिकेट लेना चाहेंगे, तो वह दे दिया जाएगा, लेकिन उसे लेने या न लेने का आपको पूरा अख्तियार है। अगर आप होशियार हैं, तो उसे लेकर फायदा उठाएँगे, नहीं इधर-उधर के धक्के खाएँगे। आपके ऊपर गुनाह बेलज्जत की मसल सादिक आएगी। इसके सिवा हम