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एक महीना और निकल गया। मुकदमे के हाईकोर्ट में पेश होने की तिथि नियत हो गई है। रमा के स्वभाव में फिर वही पहले की सी भीरुता और खुशामद आ गई है। अफसरों के इशारे पर नाचता है। शराब की मात्रा पहले से बढ़ गई है, विलासिता ने मानो पंजे में दबा लिया है। कभी-कभी उसके कमरे में एक वेश्या जोहरा भी आ जाती है, जिसका गाना वह बड़े शौक से सुनता है।

एक दिन उसने बड़ी हसरत के साथ जोहरा से कहा-मैं डरता हूँ, कहीं तुमसे प्रेम न बढ़ जाए। उसका नतीजा इसके सिवा और क्या होगा कि रो-रोकर जिंदगी काढूँ, तुमसे वफा की उम्मीद क्या हो सकती है!

जोहरा दिल में खुश होकर अपनी बड़ी-बड़ी रतनारी आँखों से उसकी ओर ताकती हुई बोली-हाँ साहब, हम वफा क्या जानें, आखिर वेश्या ही तो ठहरी! बेवफा वेश्या भी कहीं वफादार हो सकती हैं?

रमा ने आपत्ति करके पूछा-क्या इसमें कोई शक है?

जोहरा-नहीं, जरा भी नहीं, आप लोग हमारे पास मुहब्बत से लबालब भरे दिल लेकर आते हैं, पर हम उसकी जरा भी कद्र नहीं करतीं, यही बात है न?

रमानाथ-बेशक।

जोहरा–माफ कीजिएगा, आप मरदों की तरफदारी कर रहे हैं। हक यह है कि वहाँ आप लोग दिल-बहलाव के लिए जाते हैं, महज गम गलत करने के लिए, महज आनंद उठाने के लिए। जब आपको वफा की तलाश ही नहीं होती, तो वह मिले क्यों कर, लेकिन इतना मैं जानती हूँ कि हममें जितनी बेचारियाँ मरदों की बेवफाई से निराश होकर अपना आराम-चैन खो बैठती हैं, उनका पता अगर दुनिया को चले, तो आँखें खुल जाएँ। यह हमारी भूल है कि तमाशबीनों से वफा चाहते हैं, चील के घोंसले में मांस ढूँढ़ते हैं, पर प्यासा आदमी अंधे कुएँ की तरफ दौड़े तो मेरे खयाल में उसका कोई कसूर नहीं।

उस दिन रात को चलते वक्त जोहरा ने दारोगा को खुशखबरी दी। आज तो हजरत खूब मजे में आए। खुदा ने चाहा, तो दो-चार दिन के बाद बीवी का नाम भी न लें।

दारोगा ने खुश होकर कहा—इसीलिए तो तुम्हें बुलाया था। मजा तो जब है कि बीवी यहाँ से चली जाए। फिर हमें कोई गम न रहेगा। मालूम होता है स्वराज्य वालों ने उस औरत को मिला लिया है। यह सब एक ही शैतान हैं।

जोहरा की आमदोरफ्त बढ़ने लगी, यहाँ तक कि रमा खुद अपने चकमे में आ गया। उसने जोहरा से प्रेम जताकर अफसरों की नजर में अपनी साख जमानी चाही थी, पर जैसे बच्चे खेल में रो पड़ते हैं, वैसे ही उसका प्रेमाभिनय भी प्रेमोन्माद बन बैठा। जोहरा उसे अब वफा और मुहब्बत की देवी सी मालूम होती थी। वह जालपा की सी सुंदरी न सही, बातों में उससे कहीं चतुर, हाव-भाव में कहीं कुशल, सम्मोहन कला में कहीं पटु थी। रमा के हृदय में नए-नए मनसूबे पैदा होने लगे। एक दिन उसने जोहरा से कहा—जोहरा, जुदाई का समय आ रहा है। दो-चार दिन में मुझे यहाँ से चला जाना पड़ेगा। फिर तुम्हें क्यों मेरी याद आने लगी?