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रमानाथ—चला गया।

जोहरा ने मगन होकर कहा-तुमने बहुत अच्छा किया, सुअर को निकाल बाहर किया। मुझे ले जाकर दिक करता। क्या तुम सचमुच उसे मारते?

रमानाथ—मैं उसकी जान लेकर छोड़ता। मैं उस वक्त अपने आपे में न था। न जाने मुझमें उस वक्त कहाँ से इतनी ताकत आ गई थी।

जोहरा-और जो वह कल से मुझे न आने दे तो?

रमानाथ-कौन? अगर इस बीच में उसने जरा भी भांजी मारी, तो गोली मार दूंगा। वह देखो, ताक पर पिस्तौल रखा हुआ है। तुम अब मेरी हो, जोहरा! मैंने अपना सबकुछ तुम्हारे कदमों पर निसार कर दिया और तुम्हारा सबकुछ पाकर ही मैं संतुष्ट हो सकता हूँ। तुम मेरी हो, मैं तुम्हारा हूँ। किसी तीसरी औरत या मर्द को हमारे बीच में आने का मजाज नहीं है, जब तक मैं मर न जाऊँ।

जोहरा की आँखें चमक रही थीं, उसने रमा की गरदन में हाथ डालकर कहा-ऐसी बात मुँह से न निकालो, प्यारे!