'अच्छा, जरा मेरे साथ आओ। उनका पता लगाना है।'
जोहरा ने बनावटी कौतूहल से कहा-क्या अभी तक बँगले पर नहीं पहुँचे?
'न! न जाने कहाँ रह गए?'
रास्ते में दारोगा ने पूछा-जालपा कब तक यहाँ से जाएगी?
जोहरा—मैंने खूब पट्टी पढ़ाई है। उसके जाने की अब जरूरत नहीं है। शायद रास्ते पर आ जाए। रमानाथ ने बुरी तरह डाँटा है। उनकी धमकियों से डर गई है।
दारोगा—तुम्हें यकीन है कि अब यह कोई शरारत न करेगी?
जोहरा–हाँ, मेरा तो यही खयाल है।
दारोगा तो फिर यह कहाँ गया?
जोहरा–कह नहीं सकती।
दारोगा-मुझे इसकी रिपोर्ट करनी होगी। इंस्पेक्टर साहब और डिप्टी साहब को इत्तला देना जरूरी है। ज्यादा पी तो नहीं गया था?
जोहरा–पिए हुए तो थे।
दारोगा-तो कहीं गिर-गिरा पड़ा होगा। इसने बहुत दिक किया! तो मैं जरा उधर जाता हूँ। तुम्हें पहुँचा दूँ, तुम्हारे घर तक।
जोहरा–बड़ी इनायत होगी।
दारोगा ने जोहरा को मोटर साइकिल पर बिठा लिया और उसको जरा देर में घर के दरवाजे पर उतार दिया, मगर इतनी देर में मन चंचल हो गया। बोले—अब तो जाने का जी नहीं चाहता, जोहरा! चलो, आज कुछ गप-शप हो। बहुत दिन हुए, तुम्हारी करम की निगाह नहीं हुई।
जोहरा ने जीने के ऊपर एक कदम रखकर कहा-जाकर पहले इंस्पेक्टर साहब से इत्तला तो कीजिए। यह गप-शप का मौका नहीं है।
दारोगा ने मोटर साइकिल से उतरकर कहा-नहीं, अब न जाऊँगा, जोहरा! सुबह देखी जाएगी। मैं भी आता हूँ।
जोहरा-आप मानते नहीं हैं। शायद डिप्टी साहिब आते हों। आज उन्होंने कहला भेजा था।
दारोगा-मुझे चकमा दे रही हो जोहरा। देखो, इतनी बेवफाई अच्छी नहीं।
जोहरा ने ऊपर चढ़कर द्वार बंद कर लिया और ऊपर जाकर खिड़की से सिर निकालकर बोली-आदाब अर्ज!