पृष्ठ:गबन.pdf/२७

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हुआ, कहीं इसने मुझे देख तो नहीं लिया। वह जोर से चिल्ला पड़ा—चोर! चोर! नीचे बरामदे में दयानाथ भी चिल्ला उठे-चोर चोर! जालपा घबड़ाकर उठी। दौड़ी हुई कमरे में गई, झटके से आलमारी खोली। संदूकची वहाँ न थी? मूर्च्छित होकर गिर पड़ी।