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लड़के और भी तो हैं, उनके लिए भी कुछ जोड़ेंगे कि तुम्हीं को दे दें!

रमा को बड़ी-बड़ी बातें करने का फिर अवसर मिला। वह खुश था कि इतने दिनों के बाद आज उसे प्रसन्न करने का मौका तो मिला। बोला—प्रिये, तुम्हारा खयाल बहुत ठीक है। जरूर यही बात है। नहीं तो ढाई-तीन हजार उनके लिए क्या बड़ी बात थी? पचासों हजार बैंक में जमा हैं, दफ्तर तो केवल दिल बहलाने जाते हैं।

जालपा–मगर हैं मक्खीचूस पल्ले सिरे के!

रमानाथ-मक्खीचूस न होते तो इतनी संपत्ति कहाँ से आती!

जालपा–मुझे तो किसी की परवाह नहीं है जी, हमारे घर किस बात की कमी है! दाल-रोटी वहाँ भी मिल जाएगी। दो-चार सखी-सहेलियाँ हैं, खेत-खलिहान हैं, बाग-बगीचे हैं, जी बहलता रहेगा।

रमानाथ-और मेरी क्या दशा होगी, जानती हो? घुल-घुलकर मर जाऊँगा। जब से चोरी हुई, मेरे दिल पर जैसी गुजरती है, वह दिल ही जानता है। अम्माँ और बाबूजी से एक बार नहीं, लाखों बार कहा, जोर देकर कहा कि दोचार चीजें तो बनवा ही दीजिए, पर किसी के कान पर तक न रेंगी। न जाने क्यों मुझसे आँखें फेर ली?

जालपा–जब तुम्हारी नौकरी कहीं लग जाए तो मुझे बुला लेना।

रमानाथ तलाश कर रहा हूँ। बहुत जल्द मिलने वाली है। हजारों बड़े-बड़े आदमियों से मुलाकात है, नौकरी मिलते क्या देर लगती है। हाँ, जरा अच्छी जगह चाहता हूँ।

जालपा–मैं इन लोगों का रुख समझती हूँ। मैं भी यहाँ अब दावे के साथ रहूँगी। क्यों, किसी से नौकरी के लिए कहते नहीं हो?

रमानाथ-शर्म आती है किसी से कहते हुए।

जालपा—इसमें शर्म की कौन सी बात है? कहते शर्म आती हो तो खत लिख दो।

रमा उछल पड़ा, कितना सरल उपाय था और अभी तक यह सीधी-सी बात उसे न सूझी थी। बोला–हाँ, यह तुमने बहुत अच्छी तरकीब बतलाई, कल जरूर लिखूंगा।

जालपा–मुझे पहुँचाकर आना तो लिखना। कल ही थोड़े लौट आओगे।

रमानाथ–तो क्या तुम सचमुच जाओगी? तब मुझे नौकरी मिल चुकी और मैं खत लिख चुका! इस वियोग के दुःख में बैठकर रोऊँगा कि नौकरी ढूँढूँगा। नहीं, इस वक्त जाने का विचार छोड़ो। नहीं, सच कहता हूँ, मैं कहीं भाग जाऊँगा। मकान का हाल देख चुका। तुम्हारे सिवा और कौन बैठा हुआ है, जिसके लिए यहाँ पड़ा सड़ा करूँ। हटो तो जरा मैं बिस्तर खोल दूँ।

जालपा ने बिस्तर पर से जरा खिसककर कहा—मैं बहुत जल्द चली आऊँगी। तुम गए और मैं आई।

रमा ने बिस्तर खोलते हुए कहा—जी नहीं, माफ कीजिए, इस धोखे में नहीं आता। तुम्हें क्या, तुम तो सहेलियों के साथ विहार करोगी, मेरी खबर तक न लोगी और यहाँ मेरी जान पर बन आवेगी। इस घर में फिर कैसे कदम रखा जाएगा?