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जालपा ने एहसान जताते हुए कहा—आपने मेरा बँधा-बँधाया बिस्तर खोल दिया, नहीं तो आज कितने आनंद से घर पहुँच जाती। शहजादी सच कहती थी, मर्द बड़े टोनहे होते हैं। मैंने आज पक्का इरादा कर लिया था कि चाहे ब्रह्मा भी उतर आएँ, पर मैं न मानूँगी, पर तुमने दो ही मिनट में मेरे सारे मनसूबे चौपट कर दिए। कल खत लिखना जरूर। बिना कुछ पैदा किए अब निर्वाह नहीं है।
रमानाथ-कल नहीं, मैं इसी वक्त जाकर दो-तीन चिट्ठियाँ लिखता हूँ।
जालपा-पान तो खाते जाओ।
रमानाथ ने पान खाया और मरदाने कमरे में आकर खत लिखने बैठा, मगर फिर कुछ सोचकर उठ खड़ा हुआ और एक तरफ को चल दिया। स्त्री का सप्रेम आग्रह पुरुष से क्या नहीं करा सकता।