पृष्ठ:गबन.pdf/५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

माधुर्य का उन्माद। जालपा ने कमरे में आकर अपनी संदूकची खोली और उसमें से वह काँच का चंद्रहार निकाला, जिसे एक दिन पहनकर उसने अपने को धन्य माना था, पर अब इस नए चंद्रहार के सामने उसकी चमक उसी भाँति मंद पड़ गई थी, जैसे इस निर्मल चंद्रज्योति के सामने तारों का आलोक, उसने उस नकली हार को तोड़ डाला और उसके दानों को नीचे गली में फेंक दिया, उसी भाँति जैसे पूजन समाप्त हो जाने के बाद कोई उपासक मिट्टी की मूर्तियों को जल में विसर्जित कर देता है।