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रमानाथ-अभी दो-तीन महीने हए आप अपने साले को कहीं नौकर रखा चुके हैं न?

रमेश-अजी, अभी छह और बाकी हैं। पूरे सात जीव हैं। जरा बैठ जाओ, जरूरी चीजों की सूची बना ली जाए। आज ही से दौड़-धूप होगी, तब सब चीजें जुटा सकूँगा। और कितने मेहमान होंगे?

रमानाथ मेमसाहब होंगी और शायद वकील साहब भी आएँ।

रमेश—यह बहुत अच्छा किया। बहुत-से आदमी हो जाते, तो भभ्भड़ हो जाता। हमें तो मेमसाहब से काम है। ठलुओं की खुशामद करने से क्या फायदा?

दोनों आदमियों ने सूची तैयार की। रमेश बाबू ने दूसरे ही दिन से सामान जमा करना शुरू किया। उनकी पहुँच अच्छे-अच्छे घरों में थी। सजावट की अच्छी-अच्छी चीजें बटोर लाए, सारा घर जगमगा उठा। दयानाथ भी इन तैयारियों में शरीक थे। चीजों को करीने से सजाना उनका काम था। कौन गमला कहाँ रखा जाए, कौन तसवीर कहाँ लटकाई जाए, कौन सा गलीचा कहाँ बिछाया जाए, इन प्रश्नों पर तीनों मनुष्यों में घंटों वाद-विवाद होता था। दफ्तर जाने के पहले और दफ्तर से आने के बाद तीनों इन्हीं कामों में जुट जाते थे। एक दिन इस बात पर बहस छिड़ गई कि कमरे में आईना कहाँ रखा जाए? दयानाथ कहते थे, इस कमरे में आईने की जरूरत नहीं। आईना पीछे वाले कमरे में रखना चाहिए। रमेश इसका विरोध कर रहे थे। रमा दुविधा में चुपचाप खड़ा था। न इनकी सी कह सकता था, न उनकी सी।

दयानाथ—मैंने सैकड़ों अँगरेजों के ड्राइंग-रूम देखे हैं, कहीं आईना नहीं देखा। आईना श्रृंगार के कमरे में रहना चाहिए। यहाँ आईना रखना बेतुकी सी बात है।

रमेश–मुझे सैकड़ों अँगरेजों के कमरों को देखने का अवसर तो नहीं मिला है, लेकिन दो-चार जरूर देखे हैं और उनमें आईना लगा हुआ देखा। फिर क्या यह जरूरी बात है कि इन जरा-जरा सी बातों में भी हम अँगरेजों की नकल करें हम अँगरेज नहीं, हिंदुस्तानी हैं। हिंदुस्तानी रईसों के कमरे में बड़े-बड़े आदमकद आईने रखे जाते हैं। यह तो आपने हमारे बिगड़े हुए बाबुओं की सी बात कही, जो पहनावे में, कमरे की सजावट में, बोली में, चाय और शराब में, चीनी की प्यालियों में, गरज दिखावे की सभी बातों में तो अँगरेजों का मुँह चिढ़ाते हैं, लेकिन जिन बातों ने अंगरेजों को अँगरेज बना दिया है और जिनकी बदौलत वे दुनिया पर राज करते हैं, उनकी हवा तक नहीं छू जाती। क्या आपको भी बुढ़ापे में, अँगरेज बनने का शौक चर्राया है?

दयानाथ अँगरेजों की नकल को बहुत बुरा समझते थे। यह चाय-पार्टी भी उन्हें बुरी मालूम हो रही थी। अगर कुछ संतोष था, तो यही कि दो-चार बड़े आदमियों से परिचय हो जाएगा। उन्होंने अपनी जिंदगी में कभी कोट नहीं पहना था। चाय पीते थे, मगर चीनी के सेट की कैद न थी। कटोरा-कटोरी, गिलास, लोटा-तसला किसी से भी उन्हें आपत्ति न थी, लेकिन इस वक्त उन्हें अपना पक्ष निभाने की पड़ी थी। बोले-हिंदुस्तानी रईसों के कमरे में मेजेंकुरसियाँ नहीं होतीं, फर्श होता है। आपने कुरसी-मेज लगाकर इसे अँगरेजी ढंग पर तो बना दिया, अब आईने के लिए हिंदुस्तानियों की मिसाल दे रहे हैं। या तो हिंदुस्तानी रखिए या अँगरेजी, यह क्या कि आधा तीतर, आधा बटेर, कोट-पतलून पर चौगोशिया टोपी तो नहीं अच्छी मालूम होती! रमेश बाबू ने समझा था कि दयानाथ की जबान बंद हो जाएगी, लेकिन यह जवाब सुना तो चकराए। मैदान हाथ से जाता हुआ दिखाई दिया। बोले तो आपने किसी अँगरेज के कमरे में आईना नहीं देखा, भला ऐसे दस-पाँच अँगरेजों के नाम तो बताइए? एक आपका वही किरंटा हेड क्लर्क है, उसके सिवा और किसी अँगरेज के कमरे में तो शायद आपने कदम भी न रखा हो। उसी किरंटे को