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दुर्घटना फिर हो जाए तो कहीं के न रहें।

रतन–अच्छी बात है, मैं रुपए लिए जाती हूँ, मगर देखना निशचिंत न हो जाना। बाबूजी से कह देना सर्राफ का पिंड न छोड़ें।

रतन चली गई। जालपा खुश थी कि सिर से बोझ टला। बहुधा हमारे जीवन पर उन्हीं के हाथों कठोरतम आघात होता है, जो हमारे सच्चे हितैषी होते हैं। रमा कोई नौ बजे घमकर लौटा, जालपा रसोई बना रही थी। उसे देखते ही बोली-रतन आई थी, मैंने उसके सब रुपए दे दिए। रमा के पैरों के नीचे से मिट्टी खिसक गई। आँखें फैलकर माथे पर जा पहुँचीं। घबराकर बोला—क्या कहा, रतन को रुपए दे दिए? तुमसे किसने कहा था कि उसे रुपए दे देना?

जालपा—उसी के रुपए तो तुमने लाकर रखे थे। तुम खुद उसका इंतजार करते रहे। तुम्हारे जाते ही वह आई और कंगन माँगने लगी। मैंने झल्लाकर उसके रुपए फेंक दिए।

रमा ने सावधान होकर कहा—उसने रुपए माँगे तो न थे?

जालपा-माँगे क्यों नहीं हाँ, जब मैंने दे दिए तो अलबत्ता कहने लगी, इसे क्यों लौटाती हो, अपने पास ही पड़ा रहने दो। मैंने कह दिया, ऐसे शक्की मिजाज वालों का रुपया मैं नहीं रखती। रमानाथ-ईश्वर के लिए तुम मुझसे बिना पूछे ऐसे काम मत किया करो। जालपा तो अभी क्या हुआ, उसके पास जाकर रुपए माँग लाओ, मगर अभी से रुपए घर में लाकर अपने जी का जंजाल क्यों मोल लोगे? रमा इतना निस्तेज हो गया कि जालपा पर बिगड़ने की भी शक्ति उसमें न रही। रुआँसा होकर नीचे चला गया और स्थिति पर विचार करने लगा। जालपा पर बिगडना अन्याय था। जब रमा ने साफ कह दिया कि ये रुपए रत के हैं और इसका संकेत तक न किया कि मुझसे पूछे बगैर रतन को रुपए मत देना, तो जालपा का कोई अपराध नहीं। उसने सोचा, इस समय झल्लाने और बिगड़ने से समस्या हल न होगी। शांत चित्त होकर विचार करने की आवश्यकता थी। रतन से रुपए वापस लेना अनिवार्य था। जिस समय वह यहाँ आई है, अगर मैं खुद मौजूद होता तो कितनी खूबसूरती से सारी मुश्किल आसान हो जाती। मुझको क्या शामत सवार थी कि घूमने निकला! एक दिन न घूमने जाता, तो कौन मरा जाता था! कोई गुप्त शक्ति मेरा अनिष्ट करने पर उतारू हो गई है। दस मिनट की अनुपस्थिति ने सारा खेल बिगाड़ दिया। वह कह रही थी कि रुपए रख लीजिए। जालपा ने जरा समझ से काम लिया होता तो यह नौबत काहे को आती, लेकिन फिर मैं बीती हुई बातें सोचने लगा। समस्या है, रतन से रुपए वापस कैसे लिए जाएँ? क्यों न चलकर कहूँ, रुपए लौटाने से आप नाराज हो गई हैं। असल में मैं आपके लिए रुपए न लाया था। सर्राफ से इसलिए माँग लाया था, जिससे वह चीज बनाकर दे दे। संभव है, वह खुद ही लज्जित होकर क्षमा माँगे और रुपए दे दे। बस इस वक्त वहाँ जाना चाहिए। यह निश्चय करके उसने घड़ी पर नजर डाली। साढ़े आठ बजे थे। अंधकार छाया हुआ था। ऐसे समय रतन घर से बाहर नहीं जा सकती। रमा ने साइकिल उठाई और रतन से मिलने चला।

रतन के बँगले पर आज बड़ी बहार थी। यहाँ नित्य ही कोई-न-कोई उत्सव, दावत, पार्टी होती रहती थी। रतन का