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होती है, जब वह परमुखापेक्षी हो जाता है। रमा का ध्यान झूले की ओर था। किसी तरह रतन से दो-दो बातें करने का अवसर मिले। इस समय उसकी सबसे बड़ी यही कामना थी। उसका वहाँ जाना शिष्टाचार के विरुद्ध था। आखिर उसने एक क्षण के बाद झूले की ओर देखकर कहा—ये इतने लड़के किधर से आ गए?

वकील रतन बाई को बाल-समाज से बड़ा स्नेह है। न जाने कहाँ-कहाँ से इतने लड़के जमा हो जाते हैं। अगर आपको बच्चों से प्यार हो, तो जाइए! रमा तो यह चाहता ही था, चट झूले के पास जा पहुँचा। रतन उसे देखकर मुसकराई और बोली-इन शैतानों ने मेरी नाक में दम कर रखा है। झूले से इन सबों का पेट ही नहीं भरता। आइए, जरा आप भी बेगार कीजिए, मैं तो थक गई। यह कहकर वह पक्के चबूतरे पर बैठ गई। रमा झोंटे देने लगा। बच्चों ने नया आदमी देखा तो सब-के-सब अपनी बारी के लिए उतावले होने लगे। रतन के हाथों दो बारियाँ आ चुकी थीं? पर यह कैसे हो सकता था कि कुछ लड़के तो तीसरी बार झूलें और बाकी बैठे मुँह ताकें! दो उतरते तो चार झूले पर बैठ जाते। रमा को बच्चों से नाममात्र को भी प्रेम न था, पर इस वक्त फँस गया था, क्या करता! आखिर आधा घंटे की बेगार के बाद उसका जी ऊब गया। घड़ी में साढ़े नौ बज रहे थे। मतलब की बात कैसे छेड़े? रतन तो झूले में इतनी मगन थी, मानो उसे रुपयों की सुध ही नहीं है। सहसा रतन ने झूले के पास जाकर कहा–बाबूजी, मैं बैठती हूँ, मुझे झुलाइए, मगर नीचे से नहीं, झूले पर खड़े होकर पेंग मारिए।। रमा बचपन ही से झूले पर बैठते डरता था। एक बार मित्रों ने जबरदस्ती झूले पर बैठा दिया तो उसे चक्कर आने लगा, पर इस अनुरोध ने उसे झूले पर आने के लिए मजबूर कर दिया। अपनी अयोग्यता कैसे प्रकट करे। रतन दो बच्चों को लेकर बैठ गई और यह गीत गाने लगी कदम की डरिया झूला पड़ गयो री, राधा रानी झुलन आई।

रमा झूले पर खड़ा होकर पेंग मारने लगा, लेकिन उसके पाँव काँप रहे थे और दिल बैठा जाता था। जब झूला ऊपर से फिरता था, तो उसे ऐसा जान पड़ता था, मानो कोई तरल वस्तु उसके वक्ष में चुभती चली जा रही है, और रतन लड़कियों के साथ गा रही थी

कदम की डरिया झूला पड़ गयो री, राधा रानी झूलन आई। एक क्षण के बाद रतन ने कहा—जरा और बढ़ाइए साहब, आपसे तो झूला बढ़ता ही नहीं। रमा ने लज्जित होकर और जोर लगाया, पर झूला न बढ़ा, रमा के सिर में चक्कर आने लगा। रतन—आपको पेंग मारना नहीं आता, कभी झूला नहीं झूले? रमा ने झिझकते हुए कहा हाँ, इधर तो वर्षों से नहीं बैठा। रतन—तो आप इन बच्चों को सँभालकर बैठिए, मैं आपको झुलाऊँगी।

अगर उस डाल से न छू ले तो कहिएगा! रमा के प्राण सूख गए। बोला—आज तो बहुत देर हो गई है, फिर कभी आऊँगा।

रतन-अजी अभी क्या देर हो गई है, दस भी नहीं बजे, घबड़ाइए नहीं, अभी बहुत रात पड़ी है। खूब झूलकर जाइएगा। कल जालपा को लाइएगा, हम दोनों झूलेंगे।