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प्रात:काल रमा ने रतन के पास अपना आदमी भेजा। खत में लिखा, मुझे बड़ा खेद है कि कल जालपा ने आपके साथ ऐसा व्यवहार किया, जो उसे न करना चाहिए था। मेरा विचार यह कदापि न था कि रुपए आपको लौटा हूँ, मैंने सर्राफ को ताकीद करने के लिए उससे रुपए लिए थे। कंगन दो-चार रोज में अवश्य मिल जाएँगे। आप रुपए भेज दें। उसी थैली में दो सौ रुपए मेरे भी थे। वह भी भेजिएगा। अपने सम्मान की रक्षा करते हुए जितनी विनम्रता उससे हो सकती थी, उसमें कोई कसर नहीं रखी। जब तक आदमी लौटकर न आया, वह बड़ी व्यग्रता से उसकी राह देखता रहा। कभी सोचता, कहीं बहाना न कर दे या घर पर मिले ही नहीं, या दो-चार दिन के बाद देने का वादा करे। सारा दारोमदार रतन के रुपए पर था। अगर रतन ने साफ जवाब दे दिया तो फिर सर्वनाश! उसकी कल्पना से ही रमा के प्राण सूखे जा रहे थे। आखिर नौ बजे आदमी लौटा। रतन ने दो सौ रुपए तो दिए थे, मगर खत का कोई जवाब न दिया था। रमा ने निराश आँखों से आकाश की ओर देखा। सोचने लगा, रतन ने खत का जवाब क्यों नहीं दिया-मामूली शिष्टाचार भी नहीं जानती? कितनी मक्कार औरत है! रात को ऐसा मालूम होता था कि साधुता और सज्जनता की प्रतिमा ही है, पर दिल में यह गुबार भरा हुआ था! शेष रुपयों की चिंता में रमा को नहाने-खाने की भी सुध न रही। कहार अंदर गया तो जालपा ने पूछा-तुम्हें कुछ काम-धंधों की भी खबर है कि मटरगश्ती ही करते रहोगे! दस बज रहे हैं और अभी तक तरकारी-भाजी का कहीं पता नहीं?

कहार ने त्योरियाँ बदलकर कहा-तो का चार हाथ-गोड़ कर लेई! कामे से तो गवा रहिनब, बाबू मेम साहब के तीर रुपैया लेबे का भेजिन रहा।

जालपा-कौन मेमसाहब? कहार-जौन मोटर पर चढ़कर आवत हैं।

जालपा—तो लाए रुपए?

कहार–लाए काहे नाहीं, प्रिथी के छोर पर तो रहत हैं, दौरत-दौरत गोड़ पिराय लाग।

जालपा—अच्छा चटपट जाकर तरकारी लाओ।

कहार तो उधर गया, रमा रुपए लिए हुए अंदर पहुँचा तो जालपा ने कहा—तुमने अपने रुपए रतन के पास से मँगवा लिए न? अब तो मुझसे न लोगे?

रमा ने उदासीन भाव से कहा—मत दो!

जालपा–मैंने कह दिया था रुपया दे दूँगी। तुम्हें इतनी जल्द माँगने की क्यों सूझी? समझी होगी, इन्हें मेरा इतना विश्वास भी नहीं। रमा ने हताश होकर कहा—मैंने रुपए नहीं माँगे थे। केवल इतना लिख दिया था कि थैली में दो सौ रुपए ज्यादा हैं। उसने आप ही आप भेज दिए। जालपा ने हँसकर कहा-मेरे रुपए बड़े भाग्यवान हैं, दिखाऊँ? चुन-चुनकर नए रुपए रखे हैं। सब इसी साल के हैं,