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रमा शाम को दफ्तर से चलने लगा तो रमेश बाबू दौड़े हुए आए और कल रुपए लाने की ताकीद की। रमा मन में झुंझला उठा। आप बड़े ईमानदार की दुम बने हैं. ढोंगिया कहीं का! अगर अपनी जरूरत आ पड़े तो दूसरों के तलवे सहलाते फिरेंगे, पर मेरा काम है तो आप आदर्शवादी बन बैठे। यह सब दिखाने के दाँत हैं, मरते समय इसके प्राण भी जल्दी नहीं निकलेंगे! कुछ दूर चलकर उसने सोचा, एक बार फिर रतन के पास चलूँ और ऐसा कोई न था, जिससे रुपए मिलने की आशा होती। वह जब उसके बँगले पर पहुंचा, तो वह अपने बगीचे में गोल चबूतरे पर बैठी हुई थी। उसके पास ही एक गुजराती जौहरी बैठा संदूक से सुंदर आभूषण निकाल-निकालकर दिखा रहा था। रमा को देखकर वह बहुत खुश हुई। आइए बाबू साहब, देखिए सेठजी कैसी अच्छी-अच्छी चीजें लाए हैं! देखिए, हार कितना सुंदर है, इसके दाम बारह सौ रुपए बताते हैं।

रमा ने हार को हाथ में लेकर देखा और कहा हाँ, चीज तो अच्छी मालूम होती है!

रतन–दाम बहुत कहते हैं। जौहरी बाईजी, ऐसा हार अगर कोई दो हजार में ला दे तो जो जुर्माना कहिए, दूँ। बारह सौ मेरी लागत बैठ गई है। रमा ने मुसकराकर कहा-ऐसा न कहिए सेठजी, जुर्माना देना पड़ जाएगा। जौहरी–बाबू साहब, हार तो सौ रुपए में भी आ जाएगा और बिल्कुल ऐसा ही, बल्कि चमक-दमक में इससे भी बढ़कर, मगर परखना चाहिए। मैंने खुद ही आपसे मोल-तोल की बात नहीं की। मोल-तोल अनाडियों से किया जाता है। आपसे क्या मोल-तोल, हम लोग निरे रोजगारी नहीं हैं बाबू साहब, आदमी का मिजाज देखते हैं। श्रीमतीजी ने

क्या अमीराना मिजाज दिखाया है कि वाह! रतन ने हार को लुब्ध नजरों से देखकर कहा कुछ तो कम कीजिए, सेठजी! आपने तो जैसे कसम खा ली! जौहरी–कमी का नाम न लीजिए, हुजूर! यह चीज आपकी भेंट है।

रतन—अच्छा, अब एक बात बतला दीजिए, कम-से-कम इसका क्या लेंगे? जौहरी ने कुछ क्षुब्ध होकर कहा-बारह सौ रुपए और बारह कौडियाँ होंगी, हुजूर, आप से कसम खाकर कहता हूँ, इसी शहर में पंद्रह सौ का बेचूँगा और आपसे कह जाऊँगा, किसने लिया। यह कहते हुए जौहरी ने हार को रखने का केस निकाला। रतन को विश्वास हो गया, यह कुछ कम न करेगा। बालकों की भाँति अधीर होकर बोली—आप तो ऐसा समेटे लेते हैं कि हार को नजर लग जाएगी! जौहरी—क्या करूँ हुजूर! जब ऐसे दरबार में चीज की कदर नहीं होती तो दुःख होता ही है। रतन ने कमरे में जाकर रमा को बुलाया और बोली-आप समझते हैं यह कुछ और उतरेगा? रमानाथ–मेरी समझ में तो चीज एक हजार से ज्यादा की नहीं है।

रतन-उँह, होगा। मेरे पास तो छह सौ रुपए हैं। आप चार सौ रुपए का प्रबंध कर दें तो ले लूँ। यह इसी गाड़ी से