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गल्प-समुच्चय


रानी—अपनी आन ।

इस भाँति रानी ने एक घोड़े के लिए अपनी विस्तृत जागीर, उच्च राज्यपद और राज-सम्मान सब हाथ से खोया और केवल इतना ही नहीं, भविष्य के लिए काँटे बोये। इस घड़ो से अन्तदशा तक चम्पतराय को शान्ति न मिली।

( ६ )

राजा चम्पतराय ने फिर ओरछे के किले में पदार्पण किया। उन्हें मन्सब और जागीर के हाथ से निकल जाने का अत्यन्त शोक हुआ; किन्तु उन्होंने अपने मुँह से शिकायत का एक शब्द भी नहीं निकाला। वे सारन्धा के स्वभाव को भली-भाँति जानते थे। शिकायत इस समय उसके आत्म -गौरव पर कुठार का काम करता। कुछ दिन यहाँ शान्ति पूर्वक व्यतीत हुए; लेकिन बादशाह सारन्धा की कठोर बातें भूला न था। वह क्षमा करना जानता ही न था। ज्यों ही भाइयों की ओर से निश्चिन्त हुआ, उसने एक बड़ो सेना चम्पतराय का गर्व पूर्ण करने के निमित्त भेजी और बाईस अनुभवशील सरदार इस नुहोम पर नियुक्त किये। शुभकरण बुंदेला बादशाह का सूबेदार था। वह चम्पतराय का बचपन का मित्र और सहपाठी था। उसने चम्पतराय को परास्त करने का बीड़ा उठाया। और भी कितने बुँदेला ही सरदार राजा से विमुख होकर बादशाही सूबेदार से आ मिले। एक घोर संग्राम हुआ। भाइयों की तलवारें रक्त से लाल हुई। यद्यपि इस समर में राजा को विजय प्राप्त हुई; लेकिन उनकी शक्ति सदा के लिए क्षीण हो