पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/१०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

} ग़दर के पत्र 9 गए थे, और मुंड-के-झंड जाट व गूजर छावनी के आस-पास के गांवों को लूट-पाट करने चले आ रहे थे। अंगरेजों के बँगलों में आग लग चकी थी। मैं यह हाल देखकर मेरठ पहुँचने से हताश हो गया, और परेट के मैदान से आगे बढ़ा । इस बीच में दो सिपाहियों ने मुझ पर गोली चलाई, पर मैं बच गया। मैं अभी उस बारा तक पहुंचा था, जो नगूर से मिला हुआ है। गांववालों ने मुझे पकड़ लिया, और मेरे सब कपड़े छीन लिए। मैं वहाँ से बिल्कुल नंगा इस विचार से कर्नाल की ओर चला कि शायद उन लोगों में से, नो कर्नाल जा रहे हैं, कोई मिल जाय। पर मैं अभी एक ही मील गया हूँगा कि दो सिपाही आए, जो अन्य अँगरेजों का पीछा कर रहे थे, पर कोई इनके हाथ न लगा था। वे मेरे पास आए, और नंगी तलवारें लेकर कहने लगे, तू फिरंगी है, कितु मैं अत्यंत दीन होकर इनके सामने गिर पड़ा । चूंकि मैं हिंदी-भाषा और मुसलमानी धर्म जानता था, इसलिये मैंने पैगंबर मुहम्मद की प्रशंसा शुरू कर दो, और कहा कि यदि तुम विश्वास रखते हो कि इमाम मेहदी इंसाफ के लिये आएँगे, तो सुझ बेगुनाह को न मारो । साथ हो और भी धर्म की बातें कहीं। फिर भी एक ने तलवार का वार मुझ पर किया, पर मैं इनके सामने जमीन पर गिरने से वार बचा गया । और, चूंकि वे सवार थे, उनकी तलवारें मुझ तक न पहुँच सकीं। और, मेरी विनम्र बातों ने भी कुछ असर