पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/११९

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सातवी कथा . एक मेम साहब, जिनका जिक्र डॉ. वेलफोर साहब की चिट्ठी में आ चुका है, अपने भागने का हाल इस प्रकार बयान करती हैं- ११ मई को प्रातःकाल मैं एक मित्र से मिलने, जो मेराजीन के पास रहते थे, गई । जब पहलेपहल- यह खबर सुनी कि विद्रोहियों का दल मेरठ से आ रहा है, तो मुझे और दूसरी मेमों को यह सलाह दी गई कि वे मेराजीन में चली जाये, मगर मैं वहाँ न गई, बल्कि अपनी माता के घर में, जो निकट था, चली गई, और उनसे इस विद्रोह का हाल कहा। नौकरों से कहा कि इस बात की ठीक-ठीक खबर लाओ, पर उस समय सबने कहा, यहाँ कुछ भय नहीं, क्योंकि देहली की रक्षा ठीक-ठीक हो रही है। और भी कई खियाँ इकट्ठी हो गई । आधा घंटा ही बीता था कि नौकर चिल्लाने लगा कि विद्रोही आ गए, और मकानों को लूट रहे हैं। वे गिर्जाघर तक पहुंच गए हैं। चूं कि गिर्जाघर हमारी कोठी के अहाते से निकट था, इसलिये भागना भी असंभव हो गया। हमारे नौकरों ने हमें सलाह दी कि नौकरों के मकान में जाकर छिप रहें। तब हम नौकरों के घरों में छिप रहीं।