पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/१३८

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ग्यारहवी कथा १२६ मकान के कोठे पर ५ दिन तक रहे । ५ दिन बाद वहाँ से भी राजा साहब के भेजे उंट पर राजा साहब के विश्वासी के साथ मथुरा चले। रास्ते में हरएक गांव से बचते हुए चले । यहाँ तक कि एक गाँव में पहुँचे, जिसका नाम अर्वान था। ऊँट- वाला हमको सीधे बहीं ले गया। परंतु दैव-योग से रास्ता छकड़े से रुका हुआ था, इसलिये हम लौट आए। ४ ऊँट तो लौट आए, पर एक, जिस पर वीन साहब थे, पीछे रह गया। हम उनकी प्रतीक्षा में गाँव के बाहर ठहरे रहे । सशस्त्र गाँववाले हमारे चारो तरफ खड़े थे। इतने में बंदूक की दो आवाजें आईं। ये सुनते ही हम सब वहाँ से भागे। पहला ऊँट जिस पर लोल साहब सवार थे, वह तो बाहर निकल गया। दूसरा, जिस पर स्पेंसर साहब थे, गिर पड़ा, और उठ- कर भाग गया। हमारा ऊँट भी ज़मीन पर गिरा, और फिर न उठ सका । जो उसके पास जाता था, उसे काटने दौड़ता था। लाचार इसे वहीं छोड़ा । स्पेंसर साहब और कर्मिग साहब तो रास्ता छोड़कर भागे, और बटलर साहब रास्ते पर भागते रहे । विद्रोहियों ने हमें दूर से मारना शुरू किया । चूँ कि सुबह होनेवाली थी, इसलिये हम मुकाबला करने को सन्नद्ध हुए । उन्होंने हमें घेर लिया । अब बटलर साहब ने सुलह कर ली । विद्रोहियों ने कहा- यदि तुम अपनी बंदूक्क दे दो, तो हम तुम्हें कष्ट न देंगे। इस वादे पर हमने अपनी बंदूकें उन्हें दे दी। पर यह मामला