पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/५२

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अंगरेजों को विपत्ति तोड़ दिया । सवार घोड़ों पर पार होकर देहली-दरवाजे के रास्ते से चंगूरीधारा की तरफ रवाना हुए । यह बारा किले के नीचे था, और यहाँ बड़े साहब यानी रेजिडेंट रहते थे। ये सवार इस विचार से वहाँ गए थे कि उनको कत्ल कर डाले इतने में कोतवाल को खवर हो गई। वह भागता हुआ साइमन घर साहव के पास गया, और उनको इस घटना की खबर दी। साहब ने फौरन् हुक्म दिया कि दफ्तर के तमाम काराजात शहर में ले जाओ, और स्वयं दोनाली बंदूक भरकर बाशियों की तरफ गाड़ी में बैठकर चले कि इस गड़बड़ को किसी तरह दयावें, किंतु विद्रोही इनको देखते ही इनकी जान के ग्राहक हो गए। वेचारे फ्रेजर साहब ने यह रंग देखा, तो जान बचाने की चिंता करने लगे, और गाड़ी से कूदकर समन वुर्ज के रास्ते किले के अंदर जाकर उसके दरवाजे बंद कर दिए। इसी बीच में उन्होंने एक-दो बलवाइयों को गोलियों का निशाना भी यनाया । समन बुर्ज से फ्रेजर साहब सीधे किले के लाहौरी दरवाजे पर गए, और इस दरवाजे के दरबान को आझादी-"यह दरवाजा भी बंद कर दो।" इसके बाद एक विद्रोही ने आकर सूबेदार से कहा- "दरवाजा खोल दो।" सूबेदार ने पूछा-'तुम कौन हो?" उसने जवाब दिया-"मैं मेरठ के रिसाले का सवार हूँ।" सूबेदार यह सुन थोड़ी देर चुप रहा, और इसके बाद बोला-"और सिपाही कहाँ हैं ?" सिपाही ने जवाब दिया-