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विश्वम्भर में कहा- पानी आ रहा है।

रमा॰- तो क्या सारी दुनिया बह जायेगी। दौड़ते हुए जाओ।

विश्वम्भर- और वह जो घर पर न मिलें ?

रमा॰- मिलेंगे। वह इस वक्त कहीं नहीं जाते। .

आज जीवन में पहला अवसर था, कि रमा ने दोस्तों से रुपये उधार माँगे। आग्रह और विनय के जितने शब्द उसे याद आये, उनका उपयोग किया। उसके लिए यह बिलकुल नया अनुभव था। जैसे पत्र आज उसने लिखे, वैसे ही पत्र उसके पास कितनी बार आ चुके थे। उन पत्रों को पड़कर उसका हृदय कितना द्रवित हो जाता था; पर विवश होकर उसे बहाने करने पड़ते थे। क्या रमेश बाबू भी बहाना कर जायेंगे? उनकी आमदनी ज्यदा है, खर्च कम। वह चाहें तो रुपये का इन्तजाम कर सकते हैं। क्या मेरे साथ इतना सलूक भी न करेंगे ? अब तक दोनों लड़के नहीं आये। वह द्वार पर टहलने लगा। रतन की मोटर अभी तक खड़ी थी। इतने में रतन बाहर आयी और उसे टहलते देखकर भी कुछ बोली नहीं। मोटर पर बैठी आर चल दी।

दोनों कहाँ रह गये अब तक ? कहीं खेलने लगे होंगे। शैतान तो है ही। जो कहीं रमेश रुपये दे दे, तो चॉदी है। मैंने दो सौ नाहक माँगे,शायद इतने रुपये उनके पास न हो। ससुरालवालों की नोच-खसोट से कुछ रहने भी तो नहीं पाता। माणिक चाहे तो हजार-पांच सौ दे सकता है। लेकिन देखना चाहिये, आज परीक्षा हो जायेगी। अगर आज इन लोगों ने हाये न दिये, तो फिर बात न पूछूँगा। किसी का नौकर नहीं हूँ कि जब शतरंज खेलने को बुलायें, तो दौड़ा चला जाऊँ। रमा किसी की आहट पाता, तो उसका दिल जोर से धड़कने लगता था। आखिर विश्वम्भर लौटा। माणिक ने लिखा था, आजकल बहुत तंग हूँ। मैं तो तुम्हीं से माँगने वाला था।

रमा ने पुर्जा फाड़कर फेंक दिया। मालवी कहीं का! अगर सबइंस्पेक्टर ने माँगा होता तो पुजी देखते ही रुपये लेकर दौड़े जाते। खैर, देखा जायेगा। चुंगी के लिए माल तो आयेगा ही। इसकी कसर तब निकल जायेगी।

इतने में गोपी भी लौटा। रमेश ने लिखा था- मैंने अपने जीवन में

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