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उसने सोचा- इस समय झल्लाने और बिगड़ने से समस्या हल न होगी। शांतचित्त होकर विचार करने की आवश्यकता थी। रतन से रुपये वापस लेना अनिवार्य था। जिस समय वह यहाँ आयी थी, अगर मैं खुद मौजूद होता, तो कितनी खूबसूरती से सारी मुश्किल आसान हो जाती। मुझको क्या शामत सवार थी कि घूमने निकला ! एक दिन न घूमने जाता तो कौन मरा जाता था? कोई गुप्त शक्ति मेरा अनिष्ट करने पर उतारू हो गयी है। दस मिनट की अनुपस्थिति ने सारा खेल बिगाड़ दिया ? वह कह रही थी कि रुपये रख लीजिए। जालपा ने जरा समझ से काम लिया होता तो यह नौबत काहे को आती; लेकिन फिर मैं बीती हई बातें सोचने लगा। समस्या है, रतन से रुपये वापस कैसे लिये जायें ! क्यों न चलकर कहूँ, मैंने सुना है, रुपये लौटाने से आप नाराज हो गयी है। असल में में आपके लिए रुपये न लाया था। सराफ़ से इसीलिए माँग लाया था, जिसमें वह चीज बनवाकर दे दे। सम्भव है, वह खुद ही लज्जित होकर क्षमा माँगे और रूपये दे दे। बस, इसी वक्त वहां जाना चाहिए।

यह निश्चय करके उसनें घड़ी पर नजर डाली। साढ़े आठ बजे थे। अन्धकार छाया हुआ था। ऐसे समय रतन घर से बाहर नहीं जा सकती। रमा ने साइकिल उठायी और रतन से मिलने चला।

रतन के बँगले पर आज बड़ी वहार थी। यहाँ नित्य ही कोई-न-कोई उत्सव, दावत, पार्टी होती रहती थी। रतन का एकान्त नीरव जीवन इन विषयों की ओर उस भाँति लपकता था, जैसे प्यासा पानी की ओर लपकता है। इस वक्त वहाँ बच्चों का जमघट था!एक आम के वृक्ष में झूला पड़ा था, बिजली की बत्तियाँ जल रही थीं, बच्चे झूला झूल रहे थे। रतन खड़ी झुला रही थी। हू-हक मचा हुआ था। वकील साहब इस मौसम में भी ऊनी ओवरकोट पहने बरामदे में बैठे सिगार पी रहे थे। रमा की इच्छा हुई, कि झूले के पास जाकर रतन से बातें करे, पर वकील साहब को खड़े देखकर वह संकोच के मारे उधर न जा सका ! वकील साहब ने उसे देखते ही हाथ बढ़ा दिया और बोले- आओ रमा बाबू, कहो, तुम्हारे म्युनिसिपल बोर्ड की क्या खबरें हैं ?

रमा ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा- कोई नयी बात तो नहीं हुई।

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ग़बन