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बोला——आप नाहक इतना बिगड़ रहे हैं, आपसे रुपये माँगने जाऊँ तो कहिएगा। मैं अपने वेतन से थोड़ा-थोड़ा करके सब चुका दूँगा!

अपने मन में उसने कहा——यह तो आपकी ही करनी का फल है! आप ही के पाप का प्रायश्चित कर रहा हूँ।

प्यादे ने पिता और पुत्र में वाद-विवाद होते देखा तो चुपके से अपनी राह ली। मुंशीजी भुनभुनाते हुए स्नान करने चले गये। रमा ऊपर गया तो उसके मुख पर लज्जा-ग्लानि की फटकार बरस रही थी। जिस अपमान से बचने के लिये डाल-डाल; पात-पात भागता फिरता था, वह हो ही गया। इस अपमान के सामने सरकारी रुपयो की फ़िक्र भी गायब हो गयी। कर्ज लेने बाले बला के हिम्मती होते हैं। साधारण बुद्धिवाला ऐसी परिस्थितियों में पड़कर घबड़ा उठता है; पर बैठकबाजों के माथे पर बल नहीं पड़ता। रमा अभी इस कला में दक्ष नहीं हुआ था। इस समय यदि यमदूत उसके प्राण हरने आता तो वह आँखों से दौड़ कर उनका स्वागत करता है कैसे क्या होगा, यह शब्द उसके एक-एक रोम से निकल रहा था! कैसे क्या होगा? इससे अधिक वह इस समस्या की और व्याख्या न कर सकता था। यही प्रश्न एक सर्वव्यापी पिशाच की भांति उसे घूरता दिखायी देता था, कैसे क्या होगा! ये ही शब्द अगणित बगूलों की भाँति चारों ओर उठते नजर आते थे। वह इस पर विचार न कर सकता था। केवल उसकी ओर से आँखें न बन्द कर सकता था। उसका चित्त इतना खिन्न हुआ, कि आँखें सजल हो गयीं।

जालपा ने पूछा-तुमने तो कहा था, इसके अब थोड़े ही रुपये बाकी हैं।

रमा ने सिर झुकाकर कहा- वह दुष्ट झूठ बोल रहा था. मैंने रुपये दिये हैं।

जालपा——दिये होते, तो कोई रुपये का तकाजा. क्यों करता? जब तुम्हारी आमदनी इतनी कम थी तो गहने लिये ही क्यों? मैंने तो कभी जिद न की थी और मान लो, मैं दो-चार बार कहती भी, तो तुम्हें समझ बूझकर काम करना चाहिए था। अपने साथ मुझे भी चार बातें सुनवा दीं। आदमी सारी दुनिया से परदा रखता है लेकिन अपनी स्त्री से परदा नहीं रखता। तुम मुझसे परदा रखते हो। अगर मैं जानती, तुम्हारी आमदनी इतनी थोड़ी

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