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मेरा भाई या बेटा होता, तो मैं उसके साथ भी यही सलूक करता, बल्कि शायद इससे सख्त। तुम्हारे साथ तो फिर भी बड़ी नर्मी कर रहा हूँ। मेरे पास रुपये होते तो तुम्हें दे देता, लेकिन मेरी हालत तुम जानते हो। हाँ, किसी का कर्ज नहीं रखता। न किसी को कर्ज देता हूँ, न किसी से लेता हूँ। कल रुपये न पाये तो बुरा होगा। मेरी दोस्ती भी तुम्हें पुलिस के पंजे से न बचा सकेगी। मेरी दोस्ती ने आज अपना हक अदा कर दिया, वरना इस वक्त तुम्हारे हाथों में हथकड़ियाँ होतीं।

हथकड़ियाँ! यह शब्द तीर को भांति रमा की छाती में लगा। वह सिर से पाँव तक कांप उठा। उस विपत्ति की कल्पना करके उसकी आँखे डबडबा आयीं। वह धीरे-धीरे सिर झुकाये सजा पाये हुए कैदी की भाँति जाकर अपनी कुरसी पर बैठ गया; पर वह भयंकर शब्द बीच-बीच में उसके हृदय में गूंज जाता था।

आकाश पर काली घटाएँ छायी थीं। सूर्य का कहीं पता न था, यह भी क्या उस घटा रूपी कारागार में बंद है? क्या उसके हाथों में भी हथकड़ियाँ है?

२०

रमा शाम को दफ्तर से चलने लगा, तो रमेश बाबु दौड़े हुए आये और कल साये लाने की ताकीद की। रमा मन में झुँझला उठा। आप बड़े ईमानदार की दुम बने हैं? ढोंगिया कहीं का ! अगर अपनी जरूरत आ पड़े तो दूसरों के तल्वे सहलाते फिरेंगे; पर मेरा काम है तो आप आदर्शवादी बन बैठे। यह सब दिखाने के दांत हैं ! मरते समय इसके प्राण भी जल्दी नहीं निकलेंगे !

कुछ दूर चलकर उसने सोचा, एक बार फिर रतन के पास चलूं। और ऐसा कोई न था जिससे रुपये मिलने की आशा होती। वह जब उसके बंगले पर पहुंचा तो वह अपने बंगले में गोल चबूतरे पर बैठी हुई थी। उसके पास ही एक गुजराती जौहरी बैग सन्दूक से सुन्दर आभूषण निकाल-निकालकर दिखा रहा था। रमा को देखकर वह बहुत खुश हुई। आइए बाबू साहब, देखिए, सेठजी कैसी अच्छी-अच्छी चोजें लाए हैं। देखिए, हार कितना सुन्दर है, इसके दाम बारह सौ रुपये बताते हैं।

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ग़बन'’'