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रमा कुछ देर तक तो बैठा वकील साहब का योरोप-गौरव-गान सुनता रहा, अन्त में निराश होकर चल दिया।

२१

अगर इस समय किसी को संसार में सबसे दुःखी, जीवन से निराश, चिन्ताग्नि में जलते हुए प्राणी की मूर्ति देखनी हो तो उस युवक को देखे, जो साइईकिल पर बैठा हुआ अलफ्रेड-पार्क के सामने चला जा रहा है। इस वक्त अगर कोई काला सांंप नजर आये, तो वह दोनों हाथ फैलाकर उसका स्थागत करेगा और उसके विष को सुधा की तरह पियेगा। उसकी रक्षा सुधा से नहीं, अब विष ही से हो सकती है। मौत ही अब उसके चिन्ताओं का अन्त कर सकती है। लेकिन क्या मौत उसे बदनामी से भी बचा सकती है ? सबेरा होते ही यह बात घर-घर फैल जायेगी——सरकारी रुपया खा गया और जब पकड़ा गया, तब आत्म-हत्या कर ली। कुल में कलंक लगाकर मरने के बाद भी अपनी हँसी कराके चिन्ताओं से मुक्त हुआ तो क्या, लेकिन दुसरा उपाय ही क्या है?

अगर वह इस समय जाकर जालपा से सारी स्थिति कह सुनाये, तो वह उसके साथ अवश्य सहानुभूति दिखायेगी। जालपा को चाहे कितना ही दुःख हो, पर अपने गहने निकालकर देने में एक क्षण का भी विलम्बन न करेगी। गहनों को गिरवी रखकर वह सरकारी रुपये अदा कर सकता है। उसे अपना परदा खोलना पड़ेगा। इसके सिवा और कोई उपाय नहीं।

मन में निश्चय करके रमा घर की ओर चला। पर उसकी चाल में वह तेजी न थी जो मानसिक स्फूर्ति का लक्ष्य है।

लेकिन घर पहुंचकर उसने सोचा——जब यही करना है तो जल्दी क्या हैं, जब चाहूँगा, माँग लूंगा। कुछ देर गपशप करता रहा, फिर खाना खाकर लेटा। सहसा उसके जी में आया, क्यों न चुपके से कोई चीज़ उठा ले जाऊँ? कुल-मर्यादा की रक्षा करने के लिए एक बार उसने ऐसा किया भी था। उसी उपाय से क्या वह प्राणों की रक्षा नहीं कर सकता? अपनी जबान से तो शायद वह कभी अपनी विपत्ति का हाल न कह सकेगा। इसी प्राकार आगे-पीछे में पड़े हुए सबेरा हो जायेगा। और तब उसे कुछ कहने का अवसर हो न मिलेगा।

ग़बन
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