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कोई उसे क्या कह रहा है। हाय! केवल तीन सौ रुपये के लिए उसका.सर्वनाश हुआ जा रहा है। लेकिन ईश्वर की इच्छा है तो यह कर क्या सकता है। प्रियजनों की नजरों से गिरकर जिये तो क्या जिये !

जालपा उसे कितना नीच, कितना कपटी, कितना धूर्त, कितना गपोड़िया समझ रही होगी। क्या वह अपना मुंह उसे दिखा सकता है?

क्या संसार में कोई ऐसी जगह नहीं है, जहाँ वह नये जीवन का सूत्र-पात कर सके, जहाँ वह संसार से अलग-थलग सबसे मुंह मोड़कर अपना जीवन काट सके, जहाँ वह इस तरह छिप जाय कि पुलिस उसका पता न पा सके? गंगा की गोद के सिवा ऐसी जगह और कहाँ थी? अगर जीवित रहा तो महीने-दो महीने में अवश्य पकड़ लिया जायगा। उस समय क्या दशा होगी-यह हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ पहने अदालत में खड़ा होगा ! सिपाहियों का एक दल उसके ऊपर सवार होगा। सारे शहर के लोग उसका तमाशा देखने जायेंगे। जालपा भी जायगी। रतन भी जायगी। उसके पिता, सम्बन्धी, मित्र, अपने-पराये सभी भिन्न-भिन्न भावों से उसकी दुर्दशा का तमाशा देखेंगे। नहीं, वह अपनी मिट्टी को न खराब करेगा, न करेगा। इससे कहीं अच्छा है, डूब मरे।

मगर फिर खयाल आया कि जालपा किसकी होकर रहेगी? हाय, मैं अपने साथ उसे भी ले डूबा ! बाबूजी और अम्मा जी तो रो-धोकर सब्र कर लेंगे; परं उसकी रक्षा कौन करेगा? क्या वह छिपकर नहीं रह सकता? क्या शहर से दूर किसी छोटे-से गाँव में वह अज्ञातवास नहीं कर सकता? संभव है, कभी जालपा को उस पर याद आये; उसके अपराधों को क्षमा कर दे। सम्भव है, उसके पास धन भी हो जाय; पर यह असम्भव है कि वह उसके सामने आँखें सीधी कर सके। न जाने इस समय उसको क्या दशा होगी? शायद मेरे पत्र का प्राशय समझ गई हो। सायद परिस्थिति का उसे कुछ ज्ञान हो गया हो। शायद उसने अम्मा को मेरा पत्र दिखाया हो और घबराई हुई मझे खोज रही हो। शायद पिता जी को बुलाने के लिए लड़कों को भेजा गया हो। चारों तरफ मेरी तलाश हो रही होगी। कहीं कोई इनर भी न आता हो। कदाचित् मौत को देखकर भी वह इस समय इतना भयभीत न होता, जितना किसी परिचित को देखकर। प्रागे-पीछे चौकन्नी आँखों से ताकता हुया, वह उस

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