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थी। उनले बोलने का मन्त्रशर कभी न पड़ा था, पर इस समय उसका संकोच गायब हो गया। भय के सामने मन के और सभी भाव दब जाते है। चपरासी से बोली——जरा बड़े बाबू से कह दो...नहीं चलो में ही चलती हूँ। बाबू से कुछ बात करनी है।

जालपा का ठाट-बाट और रंग-ढंग देखकर चपरासी रोब में आ गया; उलटे पाँव बाबू के कमरे की ओर चला। जालपा उसके पीछे-पीछे ही थी। बड़े बाबू खबर पाते ही तुरन्त बाहर निकल आये।

जाला ने कदम आगे बढ़ाकर कहा——क्षमा कीजिये बाबू' साहब, आपको कष्ट हुआ। वह पन्द्रह-बीस मिनट हुए घर से चले, क्या अभी तक यहाँ नहीं पाये?

रमेश०——अच्छा, आप मिसेज रमानाथ है ! अभी तो वहाँ नहीं आये। मगर दफ्तर के वक़्त सैर-सपाटे करने की तो उनकी यादत न थी।

जालपा ने चपरासी की ओर ताकते हुए कहा——मैं आपसे कुछ अर्ज करना चाहती हूँ।

रमेश०——तो चलो अन्दर बैठो, यहाँ कब तक खड़ी रहोगी ? मुझे आश्चर्य है कि वह गये कहाँ। कहीं बैठे शतरंज खेल रहे होंगे।

जालपा——नहीं बाबुजी, मुझे ऐसा भय हो रहा है कि वह कहीं और न चले गये हों। अभी दस मिनट हुए, उन्होंने मेरे नाम एक पुरजा लिखा था। (जेब में टटोलकर) जी हाँ, देखिए, यह पुरजा मौजूद है। अाप उन पर कृषा रखते हैं, मापसे तो कोई परदा नहीं ! उनके जिम्मे कुछ सरकारी रुपये तो नहीं निकलते?

रमेश ने चकित होकर कहा—— क्यों, उन्होंने तुमसे कुछ नहीं कहा?

जालपा——कुछ नहीं। इस विषय में कभी एक शब्द भी नहीं कहा।

रमेश०——कुछ समझ में नहीं अता। आज उन्हें तीन सौ रुपये जमा करना है। परसों की आमदनी उन्होंने जमा नहीं की थी। नोट थे, जेब में डालकर चल दिये। बाज़ार में किसो ने नोट निकाल लिये। (मुस्कराकर) किसी और देवी की पूजा तो नहीं करते?

जालपा का मुख लज्जा से तत हो गया। बोली——अगर यह ऐब होता, तो आप भी उस इलज़ाम से न बचते। जेब से किसी ने निकाल लिये होंगे।

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ग़बन