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'माँँ ने कुछ कहा होगा?

'यह भी नहीं !'

'तो फिर घरवालो से ठन गयी होगी ! वह कहती होगी मैं अलग रहूँगी।तुम कहते होगें मैं अपने मां-बाप से अलग न रहूँगा! या गहने के लिये जिद करती होगी, नाक में दम कर दिया होगा। क्यों ?

रमा ने लज्जित होकर कहा—कुछ ऐसी ही बात थी, दादा। वह तो गहनों की बहुत इच्छुक न थी, लेकिन पा जाती थी, तो प्रसन्न हो जाती थी, और मैं प्रेम की तरंग में आगा-पीछा कुछ न सोचता था।

देवीदीन के मुंह ले मानो आप-ही-आप निकल माया-सरकारी रक्कम तो नहीं उड़ा दी?

रमा को रोमांच हो आया। छाती धक-से हो गयी। वह सरकारी रकम की बात उसले छिपाना चाहता था। देवीदीन के इस प्रश्न ने उस पर छापा मार दिया। वह कुशल सैनिक की भाँति अपनी सेना को घाटियों से, जासूसों की आँख बचाकर, निकाल ले जाना चाहता था, पर इस छापे ने उसकी सेना को अस्त-व्यस्त कर दिया। उसके चेहरे का रंग उड़ गया। वह एकाएक कोई निश्चय न कर सका कि इसका क्या जबाब दूँ।

देवीदीन ने उसके मन का भाव भांपकर कहा—प्रेम बड़ा बेढब होता है भैया। बड़े-बड़े चूक जाते हैं; तुम तो अभी लड़के हो। गबन के हजारों मुकदमे हर साल होते हैं। तहकीकात की जाय तो सबका कारण एक ही होगा-गहना ! दस बीस वारदात तो मैं आँखो देख चुका हूँ। वह रोग हो ऐसा है। औरत मुँह से तो यही कहे जाती है कि यह क्यों लाये वह क्यों लाय, रुपये कहां से आयेंगे, लेकिन उसका मन आनन्द से नाचने लगता है। यहीं एक डाक बाबू रहते थे। बेचारे ने छुरी से गला काट लिया ! एक दूसरे मियां साहब को मैं जानता हूँ, जिनको पांच साल की सजा हो गयी, जेहल में मर गये। एक तीसरे पण्डितजी को जानता हूँ, जिन्होंने अफीम खाकर जान दे दी। बुरा रोग है। दूसरों को क्या कहूँ, मैं भी तीन साल की सजा काट चुका हूँ। जवानी की बात है, जब बुढिया पर जोवन था। ताकती थी तो मानो कलेजे पर तीर चला देती थी ! मैं डाकिया था। मनीइर्डर तकसीम

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