रहने का इशारा कर रही थीं; मगर जालपा को शहजादी का व्यंग, समवेदना से परिपूर्ण जान पड़ा ! सजल नेत्र होकर बोली-क्या करोगी पूछकर बहन, जो होना था सो हो गया !
शहजादी-तुन पूछने को कहती हो, मै रुलाकर छोडूँगी। मेरे चढ़ाव पर कंगन नहीं आया था उस वक्त मन ऐसा खट्टा हुआ कि सारे गहनों पर लात मार दूं। जब तक कंगन न बन गये, मैं नींद भर सोई नहीं।
राधा-तो क्या तुम जानतो हो, जालपा का चन्द्रहार न बनेगा ? शहजादी-बनेगा तब बनेगा, इस अवसर पर तो नहीं बना। दस-पाँच की चीज तो नहीं, कि जब चाहा बनवा लिया, सैकड़ों का खर्च है। फिर कारीगर तो हमेशा अच्छे नहीं मिलते।
जालपा का भग्न हृदय शहनादी की इन बातों से मानों जी उठा, वह रुँधे कराठ से बोली-यही तो मैं भी सोचती हूँ बहन, जब आज न मिला तो फिर क्या मिलेगा !
राधा और वासन्ती मन-ही-मन शहजादी को कोस रही थीं और थप्पड़ दिखा-दिखाकर धमका रही थीं; पर शहजादी को इस वक्त तमाशे का मजा आ रहा था। बोली-नहीं, यह बात नहीं है जल्ली, आग्रह करने से सब कुछ हो सकता है। सास ससुर को बार-बार याद दिलाती रहना ! बहनोई जी से दो-चार दिन रूठे रहने से भी बहुत कुछ काम निकल सकता है। बस, यही समझ लो कि घर वाले चैन न लेने पायें, यह बात हरदम उनके ध्यान में रहे। उन्हें मालूम हो जाय कि बिना चन्द्रहार बनाये कुशल नहीं। तुम जरा भी ढोली पड़ीं और काम बिगड़ा।
राधा ने हंसो को रोकते हुए कहा-इनसे न बने तो तुम्हें बुला लें, क्यों, अब उठोगी या सारी रात उपदेश हो करती रहोगी !
शहजादी-चलती हूँ, ऐसी क्या भगदड़ पड़ी है। हाँ, खूब याद आयी, क्यों जल्ली, तेरो अम्मांजी के पास बड़ा अच्छा चन्द्रहार है, तुझे न देंगी ?
जालपा ने एक लम्बी साँस लेकर कहा-क्या कहूँ बहन, मुझे तो आशा नहीं है।
शहजादी-एक बार कहकर देखो तो, अब उनके कौन पहनने-ओढ़ने के दिन बैठे हैं।