पृष्ठ:ग़बन.pdf/१७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

चाहे कुण्डली जांचो, चाहे सगुन विचारो, सब कुछ कर सकते हो। बुढ़िया भिक्षा लेकर आयेगी। उसे देखते ही कहूँगा, माता तेरे को पुत्र के परदेश जाने का बड़ा कष्ट है, क्या तेरा कोई पुत्र विदेश गया है ? इतना सुनते ही घर-घर के लोग आ जायेंगे। यह भी आयेगी। उसका हाथ देखूँगा।

इन बातों में मैं पका भैया, तुम निश्चिन्त रहो। कुछ कमा लऊँँगा देख लेना। मात्र-मेला भी होगा। स्नान करता आऊँगा। रमा की आँखें मनोल्लास से चमक उठीं। उसका मन मधुर कल्पनाओं के संसार में जा पहुँचा। जालपा उसी वक्त रतन के पास दौड़ी जायगी। दोनों भांति-भांति के प्रश्न करेंगी-क्यो बाबा;, वह कहाँ गये है ? अच्छी तरह है न? कब तक घर आयेंगे ? कभी बाल-बच्चों की सुधि आती है उनको ? वहां किसी कामिनी के माया-जाल में तो नहीं फंस गये ? दोनों शहर का नाम भी पूछेगी ? कहीं दादा ने सरकारी रुपये चुका दिये हो, तो मजा आ जाय। तब एक ही चिन्ता रहेगी।

देवीदीन बोला——तो है न सलाह?

रमा——कहाँ जाओगे दादा, कष्ट होगा।

'माघ का स्नान भी तो करूंगा। कष्ट के बिना नहीं पुन्न होता है! मैं तो कहता हूँ, तुम भी चलो। मैं वहाँ सब रंग-ढंग देख लूँँगा। अगर देखना कि ममला टिचन है, तो चैन से घर चले जाना ! कोई खटका मालूम हो तो मेरे साथ ही लौट आना।'

रमा ने हंसकर कहा——कहाँ की बात करते हो दादा ? मैं यों कभी न जाऊँगा ! स्टेशन पर उतरते ही कहीं पुलिस का सिपाही पकड़ ले तो बस !

देवीदीन ने गंभीर होकर कहा——सिपाही क्या पकड़ लेगा, दिल्लगी है। मुझसे कहो मैं प्रयागराज के थाने में ले जाकर खड़ा कर दूं। अगर कोई तिरछी आँखो से भी देख ले तो मुंछ मुड़ा लूँ। ऐसी बात है भला, सैकड़ों खूनियों को जानता हूँ, जो यहीं कलकत्ते में रहते हैं ! पुलिस के अफसरों के साथ दावतें खाते हैं, पुलिस उन्हें जानती है, फिर भी उनका कुछ नहीं कर सकती। रुपये में बड़ा दम है भैया!

रमा ने कुछ जवाब न दिया। उसके सामने यह नया प्रश्न या खड़ा हुआ। जिन बातों को वह अनुभव न होने के कारण महा कष्ट साध्य समझता था,

१६६
ग़बन