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उन्हें इस बूढ़े ने निर्मुल कर दिया और बुढ़ा शेखीबाजों में नहीं है। वह मुँह से जो कहता है, उसे पूरा कर दिखाने का सामर्थ्य रखता है। उसने सोचा, तो क्या मैं सचमुच देवीदीन के साथ घर चला जाऊँ। यही कुछ रुपये मिल जाते, तो नये सूट बनवा लेता, फिर शान में जाता। वह उस अबसर की कल्पना करने लगा, जब वह सूट पहने हुए घर पहुंचेगा। उसे देखते ही गोपी और विश्वम्भर दौड़ेंगे-भैया आये, भैया आये ! दादा निकल आयेंगे। अम्मा को पहले विश्वास न आयेगा, मगर जब दादा जाकर कहेंगे- हां आ तो गये, तब वह रोती हुई, द्वार की ओर चलेंगी। उसी वक्त में पहुँचकर उनके पैरों पर गिर पडूंगा। जालपा वहां न आयेगी। वह मान किये बैठी रहेगी। रमा ने मन-ही-मन वह वाक्य भी सोच लिया, जो वह जालपा को मनाने के लिए कहेगा। शायद रुपये की चर्चा ही न आये ! इस विषय पर कुछ कहते हुए सभी को संकोच होगा। अपने प्रियजनों से जब कोई अपराध हो जाता है तो हम उघाड़कर उसे दुःखी नहीं करते। चाहते है कि उस बात का उसे ध्यान ही न आये; उसने साथ ऐसा व्यवहार करते हैं, कि उसे हमारी ओर से जरा भी भ्रम न हो, वह भूल जर भी न समझे, कि मेरी अपकीर्ति हो रही है।

देवीदीन ने पूछा-क्या सोच रहे हो ? चलोगे न ?

रमा ने दबी जबान से कहा- तुम्हारी इतनी दया है, तो चलूँँगा; मगर पहले तुम्हें मेरे घर जाकर पूरा-पूरा समाचार लाना पड़ेगा। अगर मेरा मन न भरा तो मैं लौट आऊँँगा।

देवीदीन ने दृढ़ता से कहा-मंजूर!

रमा ने संकोच से आँखें नीची करके कहा-एक बात और है।

देवी०-क्या बात है ? कहो।।

'मुझे कुछ कपड़े बनवाने पड़ेंगे।

'बन जायंगे।'

'मैं घर पहुँचकर तुम्हारे रुपये दिला दूँँगा।

'और मैं तुम्हारी गुरु-दक्षिणा भी वहीं दे दूंगा।'

'गुरु-दक्षिणा भी मुझो को देनी पड़ेगी। मैंने चार हरक अंगरेजी पढ़ा दिये, तो तुम्हारा इससे कोई उपकार न होगा। तुमने मुझे जो पाठ पढ़ाये

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