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यह, देखो, नमूने लाया हूँ। इनमें जौन-का पसन्द करो, ले लूँ।' यह कहकर देवीदीन ने उनी और रेशमी कपड़ों के सैकड़ों नमूने निकाल कर रख दिय।पाँच छः रुपये गज से कम का कोई न था।

रना ने नमूनों को उलट-पलटकर देखा और बोला-इतने मँहगे कपड़े क्यो लाये और सस्ते न थे?

'सस्ते थे, मुदा विलायती थे।'

तुम विलायती कपड़े नहीं पहनते?

'इधर बीस साल से तो नहीं लिये, उधर की बात नहीं कहता। कुछ बेसी दाम लग जाता है, पर रुपया तो देश ही में रह जाता है'

रमा ने लजाते हुए कहा——तुम नियम के बड़े पक्के हो, दादा। देवीदीन की मुद्रा सहसा तेजवान् हो गयी। उसकी बुझी हुई आँखें चमक उठी। देह की नसें तन गयीं। अकड़कर बोला-जिस देश में रहते हैं, जिसका अन्न-जल खाते हैं, उसके लिए इतना भी न करें, तो जीने को धिक्कार है। दो जवान बेटे इसी सुदेश को भेंट कर चुका हूँ, भैया। ऐसे-ऐसे पटठे थे कि तुमसे क्या कहें! दोनों विदेशी कपड़े की दुकान पर तैनात थे। क्या मजाल थी कि कोई गाहक दुकान पर ना जाय। हाथ जोड़कर, धिधियाकर धमकाकर, लजवाकर सबको फेर देते थे। बजाने में सियार लोटने लगे। सबो ने जाकर कमिसनर से फरियाद की। सुनकर आग हो गया। बीस फोजी गोरे भेजे, कि अभी जाकर बाजार से पहरे उठा दो। गोरों ने दोनों भाइयों से कहा——यहां से चले जाव, मूदा वह अपनी जगह से जौ भर न हिलें। भीड़ लग गयी। गोरे उन पर घोड़े चढ़ा लाते थे, पर दोनों चट्टान की तरह डटे खड़े थे। अखिर जब इस तरह कुछ बस न चला तो सबो ने डण्डों से पीटना शुरू किया। दोनों वीर डंडे खाते थे, पर जगह से न हिलते थे। जब बड़ा भाई गिर पड़ा तो छोटा उसकी जगह पर आ खड़ा हुआ। अगर दोनों अपने डंडे सँभाल लेते, तो भैया, उन बीसो को मार भगाते, लेकिन हाय उठाना तो बड़ी बात है, सिर तक न उठाया। अन्त में छोटा भी वहीं गिर पड़ा। दोनों को लोगों ने उठाकर अस्पताल भेजा। उसी रात को दोनों सिधार गये। तुम्हारे चरन छूकर कहता हूँ भैया, उस वक्त ऐसा जान पड़ता था, कि मेरी छाती गज-भर को हो गयी है, पांव जमीन पर न

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