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चहते थे। यही उमंग आती थी कि भगवान ने औरों को पहले न उठा लिया होता, तो इस समय उन्हें भी भेज देता। जब अर्थी चली है, तो एक लाख आदमी साथ थे। बेटों को गंगा में सौंपकर मैं सीधे बजाजे पहुंचा और उसी जगह पड़ा हुआ, जहां दोनों वीरों की लाश गिरी थी। गाहक के नान चिड़िये का पूत तक न दिखायी दिया। आठ दिन वहां से हिला तक नहीं। बस, भोर के समय आध घंटे के लिए घर आता था और नहा-धोकर कुछ जल पान करके चला जाता था। न दिन दूकानदारों ने कसम खायी, कि विलायती कपड़े अब न मँगायेंगे। तब पहरे उठा लिये गये। तब से विदेशी विलायती तक घर में नहीं लाया।

रमा ने सच्चे हृदय से कहा——दादा, तुम सच्चे वीर हो, और वे दोनों लड़के भी सच्चे योद्धा थे। तुम्हारे दर्शन से आँखें पवित्र होती हैं।

देवीदीन ने इस भाव से देखा मानो इस बड़ाई को वह बिल्कुल गतिशयोक्ति नहीं समझता। शहीदों की शान से बोला——इन बड़े-बड़े आदमियो के किये कुछ न होगा। इन्हें बस रोना आता है। छोकरियों की भांति बिसूरने के सिवा इनसे और कुछ नहीं हो सकता। बड़े-बड़े देशभकतो को बिना विलायती शराब के चैन नहीं आता। उनके घर में जाकर देखो तो एक भी देशो चीज न मिलेंगी। दिखाने को दस-बीस कुरते गाड़े के बनवा लिये, घर का और सब सामान विलायती है। सब-के-सब भोग-विलास में अन्धे हो रहे हैं, छोटे भी और बड़े भी। उन पर दावा यह है कि देश का उद्धार करेंगे। अरे तुम क्या देश का उद्धार करोगे ! पहले अपना उद्धार कर लो। गरीबों को लुटकर विलायत का घर भरना तुम्हारा काम है। इसीलिए तुम्हारा इस देश में जन्म हुआ है। हां, रोये जाओ, और विलायती सराबे उड़ाये जायो! विलायती मोटरे दौड़ाओ, विलायती मुरब्बे और अचार चखो, विलायती बरतनों में खाओ, विलायती दवाइयां पीयो, पर देश के नाम को 'रोये जायो। मुदा इस रोने से कुछ न होगा। रोने से माँ दूध पिलाती है, शेर अपना शिकार नहीं छोड़ता। रोओ उसके सामने जिसमें दया और धरम हो। तुम धमकाकर ही क्या कर लोगे ? जिस धमकी में कुछ दया नहीं है उस धमकी की परवाह कौन करता है ? एक बार यहाँ एक बड़ा भारी जलसा हुआ। एक साहब बहादुर खड़े होकर खूब उछले कुदे। जब वह नीचे

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