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पाये तब मैंने उनसे पूछा——साहब, सच बतायो, जब तुम सुराज का नाम लेदो हो, उसका कौन-सा रूप तुम्हारी ब्रांखों के सामने आता है ? तुम भी बड़ी-बड़ी तलब लोगे, तुम भो अंगरेजों की तरह वंगलों में रहोगे, पहाड़ों की हवा खायोगे, अंगरेजो ठाट वनाये मोगे। इन सुराज से देश का क्या कल्यान होगा ? तुम्हारी और तुम्हारे भाई-बन्दों को जिन्दगी भले पाराम और बाद से गुजरे; पर देश का तो काई मना न होगा ! बर, बगलें झांकने लगे। तुम दिन में पांच बेर खाना चाहते हो. और वह भा अड़िया माल; गरोत्र किसान को एक जून सूखा च देना भी नहीं मिलता। उसी का रक्त चमकर तो सरकार तुम्हें हुई देतो है। तुम्हारा धान कभी उनकी ओर जाता है ? अभी तुम्हारा राज नहीं है, तब तो तुम भोग-विलास पर इतना मरते हो, जब तुहारा राज हो जायगा, तत्र तो तुम गरीबों को पीसकर पी जानोगे।

रमा भद्र समाज पर यह अाक्षेप न सुन सक्का। अाखिर यह भी तो भद्र समाज का एक ही अंग था। बोला——यह तो नहीं है दादा, कि पढ़े लिखे लोग किसानों का ध्यान नहीं करते। उनमें से कितने ही खुद किसान थे या हैं। उन्हें अगर विश्वास हो जाय कि हमारे काष्ट उठाने से किसानों का कोई उपकार होगा, और जो बक्त होगी वह किसानों के लिए खर्च की जायगी, तो वह खुशी से कम वेतन पर काम करेंगे: लेकिन जब वह देखते हैं कि बचत दुसरे हहप जाते हैं, तो वह सोचते हैं, अगर दूसरों को ही खाना है, तो हम क्यों न खायें।

देवी०——तो सुराज मिलने पर दस-दस पांच-पांच हजार के अफसर नहीं रहेंगे? वकीलों को लूट नहीं रहेगो ? पुलिस को लूट बन्द हो जायगी ?

एक क्षण के लिए रमा सिटापिटा गया। इस विषय में उसने खुद कभी विचार न किया था; मगर तुरन्त ही उसे जवांव सूझ गया। बोला——दादा, सब तो सभी काम बहुमत से होगा। अगर बहमत कहेगा कि कर्मचारियों के वेतन घंटा दिये जाय, तो घर जायगे। देहातों के संगठन के लिए भी बहुमत जितने रुपये मांगेगा, मिल जायेंगे। कुंजी बहुमत के हाथों में रहेगी। और अभी दस-पांच बरस चाहे न हो, लेकिन आगे चलकर बहुमत किसानों और मजूरों का ही हो जायगा।

देवीदीन ने मुसकराकर कहा-भैया, तुम भी इन बातों को समझते

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