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मुझे यह इनाम मिल जाय। अखबार के दफ्तर में अक्सर खुफिया पुलिस के आदमी आते-जाते हैं। यही भय है। नहीं तो मैं खुद चला जाता। लेकिन तुम नहीं जा रहे हो तो लाचारीवश मुझे ही जाना पड़ेगा। बड़ी मेहनत से यह नक्शा हल किया है। सारी रात जागता रहा हूं।

देवीदीन ने चिन्तित स्वर में कहा-तुम्हारा वहाँ जाना ठीक नहीं।

रमा ने हैरान होकर पूछा-तो फिर ? क्या डाक से भेज दूँ?

देवीदीन ने एक क्षण सोचकर कहा- नहीं, डाक से क्या भेजोगे। सादा लिफाफा इधर-उधर हो जाय तो तुम्हारी मेहनत अकारथ जाय। रजिस्ट्री कराओ तो कहीं परसों पहुँचेगा', कल इतवार है। किसी और ने जबाव भेज दिया, वो इनाम वह ले जायगा। यह भी तो हो सकता है कि अखबार वाले धांधली कर बैठे और तुम्हारा जवाब अपने नाम से छापकर रुपया हजम कर लें।

रमा में दुविधे में पड़कर कहा——मैं ही चला जाऊँगा। 'तुम्हें मैं जाने न दूंगा। कहीं फंस जाओ तो बस!'

'फँसना तो एक दिन है ही ! कब तक छिपा रहूँगा ?'

'तो मरने के पहले ही क्यो रोना-पीटना हो ? जब फँसोगे, तब देखी जायगी। लाओ मैं चला जाऊँ। बुढ़िया से कोई बहाना कर दूंगा। अभी भेंट भी हो जायगी। दफ्तर ही में रहते भी हैं। फिर धूमने–घामने चल देंगे, दस बजे से पहले न लौटेंगे।'

रमा ने डरते-डरते कहा——तो दस बजे के बाद जाना, क्या हरज है ?

देवीदीन ने खड़े होकर कहा——तब तक कोई दूसरा काम आ गया, तो आज रह जायगा। घण्टे-भर में लौट आता हूँ। अभी बुढ़िया देर में आयेगी।

यह कहते हुए देवीदीन ने अपना कम्बल ओड़ा, रमा से लिफ़ाफ़ा लिया और चल दिया।

जग्गो साग, भाजी और फल लेने मण्डी गयी हुई थी। आधे-घण्टे में सिर पर एक टोकरी रखे और एक बड़ा-सा टोकरा नजूर के सिर पर रखवावे आयी। पसीने से तर थी। आते हु बोली——कहाँ गये? जरा बोझ को उतारो, गर्दन टूट गयी।

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